मंडी शिवरात्रि मेला 2024 : हिमाचल का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक त्यौहार

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हिमाचल प्रदेश को प्राचीन काल से ही देवभूमि (देवताओं की भूमि) के रूप में जाना जाता है। आज भी इस पहाड़ी राज्य के लोगों की अपने देवी-देवताओं पर गहरी आस्था है।

वे अपने दैनिक जीवन से संबंधित किसी भी महत्वपूर्ण गतिविधि को करने से पहले देवताओं को याद करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। वे अपने देवताओं से उन्हें शांति, समृद्धि, खुशी प्रदान करने और उन्हें उनकी विभिन्न गतिविधियों में सफलता प्रदान करने का आशीर्वाद मांगते हैं।

हालाँकि देवता हिमाचली लोगों के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हैं फिर भी कुछ विशेष अवसर होते हैं जब पूरे हिमाचल से लोग विभिन्न देवताओं की पूजा के लिए एकत्रित होते हैं।

इन अवसरों में भाग लेने के लिए हिमाचल प्रदेश के विभिन्न गांवों और स्थानों से देवता आते हैं। इस राज्य के संबंधित गांवों और स्थानों के लोग देवताओं की पालकी या रथों को अपने कंधों पर ले जाते हैं। ये लोग पूरी दूरी पैदल ही तय करते हैं।

जब देवता किसी विशेष दिन पर एकत्रित होते हैं तो ढोल नगाड़े और भजन गायन के बीच लोगों द्वारा उनकी पूजा की जाती है। देवता इधर-उधर घूमकर अपनी उपस्थिति दिखाते हैं क्योंकि उन्हें वाहक द्वारा ले जाया जाता है और श्रद्धा के संकेत के रूप में मंदिर में मुख्य देवता के सामने झुकते हैं। पूरा वातावरण अत्यंत धार्मिक, आध्यात्मिक और विद्युतमय हो जाता है और आपको एक अलग दुनिया में ले जाता है।

ये विशेष अवसर हिमाचल प्रदेश का गौरव है और इस खूबसूरत पहाड़ी राज्य के लोगों की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा है। उनमें से प्रमुख हैं मंडी शिवरात्रि, कुल्लू का दशहरा, शिव कुरनू मेला और पराशर सरनाहुली मेला।

इन धार्मिक मेलों की लोकप्रियता केवल हिमाचल तक ही सीमित नहीं है। इनमें भाग लेने के लिए भारत के अन्य भागों के साथ-साथ विश्व के विभिन्न भागों से भी लोग आते हैं। यह त्यौहार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाते हैं।

इतिहास

मंडी शहर पर राजा अजबर सेन का शासन था जिन्हें सोलहवीं शताब्दी में मंडी राज्य का पहला महान शासक माना जाता था, क्योंकि उन्होंने न केवल वंशानुगत क्षेत्रों को एकजुट किया था बल्कि नए क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करके इसे जोड़ा भी था।

अपने महल के अलावा, उन्होंने मंडी शहर के केंद्र में भूतनाथ (शिव का मंदिर) का मंदिर बनवाया था जो त्यौहार के दो केंद्रीय मंदिरों में से एक है। इस काल में विकसित हुए धार्मिक राज्य में शिव और संबंधित देवी-देवताओं की पूजा प्रमुख थी।

कहा जाता है कि राजा सूरज सेन के शासनकाल के दौरान विष्णु पूजा भी राज्य का अभिन्न अंग बन गई थी। राजा सूरज सेन (1664 से 1679) का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उन्होंने मंडी के रक्षक के रूप में भगवान विष्णु के एक रूप को समर्पित “माधव राय मंदिर” नामक मंदिर का निर्माण कराया था।

वर्ष 1705 में उनके सुनार भीम द्वारा राधा और कृष्ण की एक सुंदर चांदी की छवि बनाई गई थी, जिसे “माधो राय” नाम दिया गया। उसके बाद उन्हें मंडी राज्य के राजा के रूप में नियुक्त किया गया था। तब से शासकों ने माधो राय के सेवक और राज्य के संरक्षक के रूप में राज्य की सेवा की।

शिवरात्रि शुरू होने से पहले इस त्यौहार को मेले के रूप में विशेष रूप से मनाने का संबंध इसके शासक ईश्वरी सेन से है। 1792 में पंजाब के संसार चंद द्वारा छेड़े गए युद्ध में अपना राज्य खोने के बाद ईश्वरी सेन को 12 साल तक बंदी बनाकर रखा गया था। उन्हें गोरखा आक्रमणकारियों ने रिहा कर दिया था जिन्होंने कांगड़ा और मंडी राज्यों पर आक्रमण किया था।

बाद में गोरखाओं ने ईश्वरी सेन को मंडी राज्य बहाल कर दिया। उनके राज्य की राजधानी मंडी लौटने के अवसर पर उनका स्वागत किया गया।

इस अवसर पर राजा ने राज्य के सभी पहाड़ी देवताओं को आमंत्रित किया और एक भव्य उत्सव मनाया और यह दिन शिवरात्रि उत्सव का दिन था। तब से हर साल मंडी में शिवरात्रि के दौरान मंडी मेला आयोजित करने की प्रथा देखी जाती है। हाल के वर्षों में, आधुनिकता भी आ गई है और शाम के समारोहों में पड्डल के मेले में बॉलीवुड कलाकार प्रस्तुति देते हैं ।

मंडी शिवरात्रि महोत्सव को लेकर कई दंत कथाएं

प्रचलित- छोटी काशी मंडी में आयोजित होने वाले शिवरात्रि महोत्सव को लेकर कई दंत कथाएं प्रचलित हैं। कुछ लोगों का कहना है कि राज अजबर से 1526 ई. में जब मंडी शहर में बाबा भूतनाथ का मंदिर बनाया गया तो उसके बाद ही यहां पर शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत हुई।

वहीं, एक दंतकथा यह भी प्रचलित है कि मंडी रियासत के राजा ईश्वरीय सेन ने जब कांगड़ा बड़ा भंगाल के महाराजा संसार चंद युद्ध में पराजित किया तो उसके उपरांत मंडी में लोगों ने जीत और शिवरात्रि का एक साथ जश्न मनाया। इसी जश्न के साथ मंडी में शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत हुई।

राजा बान सेन के समय से मनाया जाता है शिवरात्रि पर्व

मंडी शिवभूमी रही है और राजा बान सेन के समय से ही यहां पर शिवरात्रि पर्व मनाया जाता रहा है। राजा सूरज सेन के कार्यकाल में मंडी जनपद में विधिवत रूप शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत हुई।

पहले जनपद के सभी देवी-देवता सेरी चांदनी में विराजमान होते थे। शिवरात्रि महोत्सव में रियासत काल में कुछ भी देवी-देवता शिरकत करते थे और जैसे-जैसे शिवरात्रि महोत्सव प्रचलित होता रहा मंडी में देवी-देवताओं का आगमन बढ़ता गया।

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शिवरात्रि मेला 2024

अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि मेला 2024 को अब एक महीने के कम समय बचा है। इसे देखते हुए छोटी काशी मंडी में आयोजन को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं। उपायुक्त अपूर्व देवगन ने आयोजन से जुड़े प्रबंधों की समीक्षा के लिए बुधवार को अधिकारियों की बैठक ली।

उन्होंने सभी के सहयोग से मेले के भव्य और भावपूर्ण आयोजन की बात कही। अपूर्व देवगन ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि मेले की पहली जलेब 9 मार्च को निकाली जाएगी।

मध्य जलेब 12 को तथा तीसरी व अंतिम जलेब 15 मार्च को निकलेगी। इनमें आकर्षक झांकियां भी शामिल की जाएंगी। वहीं 9 से 14 मार्च तक 6 सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन होगा।

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