चेरी उत्पादकों के लिए भालू बने सिरदर्द, वन विभाग ने कहा ड्रम बजा कर भगाएं!

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हिमाचल प्रदेश लगभग 450 हेक्टेयर क्षेत्र में हर साल करीब 1200 मीट्रिक टन चेरी का उत्पादन करता है। इसका अधिकतर हिस्सा सिरमौर के कोटगढ़ क्षेत्र से आता है जहां चेरी के बगीचे बहुतायत में हैं. हिमाचल के अन्य भागों में चेरी का उत्पादन शुरुआती दौर में ही है।

कोटगढ़ क्षेत्र के चेरी उत्पादकों के लिए समय काफी मुश्किलों भरा रहा है क्योंकि इस वर्ष जंगली भालुओं का प्रकोप काफी बढ़ा है. चेरी जैसे मौसमी फलों को हानि पहुँचाने के अलावा भालू किसानों के दिन-प्रतिदिन के अन्य कृषि कार्यों को भी प्रभावित कर रहे हैं। भालू ज्यादातर कोठगढ़ क्षेत्र के बहली, भुट्टी, मान्जावन, ददेश, बनोट, डोबा और दालान गांवों में सक्रिय हैं।

वन विभाग ने ड्रम बजा कर भालुओं को दूर रखने के लिए कहा

“इस बार भालुओं के अतिक्रमण से लगभग 6 से 8 गांव प्रभावित हुए हैं। कोटगढ़ के ददेश गांव के निवासी अजय ठाकुर ने कहा, “उन्होंने न केवल फलों को नुकसान पहुंचाया बल्कि पेड़ों को भी नुकसान पहुंचाया।”

“वन विभाग से कोई मदद नहीं मिलने के कारण किसान भालुओं को फलों के बागों से दूर रखने के लिए आग का सहारा ले रहे हैं। यह एक स्थायी समाधान नहीं है. पूरी रात आग जला कर जागते रहना किसी के लिए भी आसान नहीं है.”  कोटगढ़ निवासी एचएस ठाकुर कहते हैं।

बहली गांव के निवासी एएस भालिक के अनुसार, “पिछले दो से तीन सालों में भालुओं का प्रकोप काफी रहा है लेकिन इस बार यह कुछ ज्यादा ही हो रहा है।” उन्होंने कहा कि वन विभाग असहाय लगता है। “मैंने सन 2012 में इस समस्या के बारे में विभाग को लिखा था और स्थानीय कार्यालय ने मुझे 2015 में सूचित किया कि मेरी शिकायत शिमला कार्यालय को भेजी गई है। आप संबंधित विभाग की समस्या के प्रति गंभीरता का अंदाजा खुद लगा सकते हैं।”

भालिक ने कहा, “वन अधिकारियों ने किसानों को ड्रम बजा कर और आग जला कर भालुओं को दूर रखने का मशविरा दिया है लेकिन यह व्यावहारिक समाधान नहीं है।”

एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “राज्य के अन्य हिस्सों से भी भालुओं द्वारा चेरी के बगीचों और मधुमक्खी छिद्रों पर हमला की खबरें आ रही हैं, लेकिन कोटगढ़ क्षेत्र में समस्या ज्यादा गंभीर है।”

विभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) एच.के.गुप्ता ने कहा कि विभाग ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। “पिछली बार जब मैंने इस मुद्दे के बारे में उच्चतर कार्यालय से बात की तो उन्होंने किसानों को एहतियाती उपाय करने के लिए कहा। किसानों को ड्रम और बगीचों में आग जलाने को कहा गया था।” डीएफओ ने कहा कि,  ग्रामीणों द्वारा रिपोर्ट की गई कोटगढ़ में लगातार घटनाएं अन्य क्षेत्रों के मुकाबले चेरी बागों के उच्च घनत्व के कारण हो सकती हैं।”

“पिछले साल भालुओं को पिंजरों में पकड़ने की कोशिश की गयी थी लेकिन यह ज्यादा सफल नहीं रही क्योंकि एक भालू को पिंजरे में पकड़ना आसान नहीं है”, एच.के.गुप्ता कहते हैं.

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