एनपीएस एग्रीमेंट तोडऩे का नुकसान क्या होगा, वित्त विभाग ने विधि विभाग से तीन बिंदुओं पर मांगी है सलाह

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हिमाचल में ओल्ड पेंशन को लागू करने के लिए राज्य सरकार को एनपीएस एग्रीमेंट को तोडऩा होगा। ब्रीच ऑफ एग्रीमेंट के साइड इफेक्ट क्या होंगे? इस बारे में अब वित्त विभाग ने विधि विभाग से राय पूछी है।

फाइल में 22 मार्च, 2010 को केंद्र सरकार के साथ किए गए एनपीएस एग्रीमेंट की कॉपी के साथ पीएफआरडीए एक्ट की प्रति भी भेजी गई है। इन दोनों लीगल डॉक्यूमेंट के आधार पर विधि विभाग को यह सलाह चाहिए कि ओल्ड पेंशन में जाने के बाद क्या राज्य को कोई क्षति होगी? राज्य के पास लीगल विकल्प क्या हैं?

हिमाचल में एनपीएस को 15-05-2003 से लागू किया गया, जिसके बारे में फैसला 17-08-2006 को तत्कालीन सरकार ने लिया था। इसका अर्थ यह हुआ कि वीरभद्र सिंह सरकार ने हिमाचल में एनपीएस को लागू किया था और धूमल सरकार के समय एनपीएस में आने का एग्रीमेंट साइन हुआ था।

इस एग्रीमेंट पर राज्य सरकार की तरफ से तत्कालीन विशेष सचिव वित्त अक्षय सूद ने साइन किए थे, जो अब फाइनांस सेक्रेटरी हैं। भारत सरकार की तरफ से एनपीएस के सीईओ एनआर रायडू ने हस्ताक्षर किए थे। दो अन्य गवाह भी भारत सरकार के ही थे।

इस एग्रीमेंट में कोई एग्जिट क्लॉज नहीं है। क्लाज-03 में कहा गया है कि राज्य सरकार ने एनपीएस स्ट्रक्चर को पूरी तरह समझ लिया है और भारत सरकार की इस व्यवस्था से राज्य पूरी तरह सहमत है।

What will be loss of breaking the NPS agreement

इसी आधार पर हिमाचल ने हिमाचल प्रदेश सिविल सर्विसेज कंट्रीब्यूटरी पेंशन रूल्स-2006 बनाए थे। ओल्ड पेंशन के लिए इन्हीं नियमों में बदलाव होगा। इस एग्रीमेंट में राज्य सरकार ने यह गारंटी दी थी कि वह एनपीएस की हर कमिटमेंट को पूरा करेगी।

इस एग्रीमेंट के क्लॉज 10 में व्यवस्था है कि यदि किसी प्रावधान से राज्य सहमत नहीं है, तो मामला पीएफआरडीए को रेफर किया जाएगा और उसके बाद अर्बिट्रेटर नियुक्त होगा।

अब क्योंकि सुक्खू सरकार ओल्ड पेंशन लागू करने का फैसला कर चुकी है, इसीलिए सरकार के पास आर्बिट्रेशन में जाने का विकल्प भी नहीं है।

अभी विधि विभाग से वापस नहीं लौटी फाइल

एनपीएस एग्रीमेंट का क्लाज 11 कहता है कि किसी भी तरह के मतभेद पर मामला दिल्ली के न्यायालय में ही चलेगा। क्लॉज 13 में प्रावधान है कि राज्य सरकार एग्रीमेंट के तहत एनपीएस से संबंधित किसी भी तरह की जिम्मेदारी ट्रांसफर नहीं कर सकती।

अभी यह फाइल विधि विभाग से वापस नहीं लौटी है, इसलिए 16 फरवरी को कैबिनेट मीटिंग में ओल्ड पेंशन का मामला चर्चा में नहीं आ पाएगा।

यह है केंद्र का जवाब

हिमाचल सरकार के वित्त विभाग ने ओल्ड पेंशन को लागू करने का निर्णय लेने से पहले भारत सरकार से राज्य सरकार का 14 फ़ीसदी कंट्रीब्यूशन लौटाने के लिए पत्र लिखा था।

इसके जवाब में पीएफआरडीए ने कहा था कि ऐसा कोई प्रावधान एग्रीमेंट में नहीं है, इसलिए पैसा वापस नहीं दिया जा सकता। यह पैसा कर्मचारी को ही रिटायरमेंट पर मिलेगा। इसके बाद वित्त विभाग ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को पत्र भेजा है।

इसका जवाब अभी तक नहीं आया है। 13 जनवरी को पहली कैबिनेट में हुए फैसले के अनुसार ऑफिस मेमोरेंडम भी अलग से पीएफआरडीए को भेजा गया है। इस पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

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