पौराणिक कथाओं में आप सब ने यह बात तो सुनी होगी कि ऋषि मुनि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तपस्या में लीन हो जाते थे। देवता भी इनकी तपस्या से खुश होकर इन्हें कोई न कोई वरदान देते थे। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे ही संत के बारे में बताने जा रहे हैं, जो 550 सालों से ध्यान मुद्रा में बैठे हैं।
आपको यह सुनकर यकीन तो नहीं होगा परंतु यह बात बिलकुल सच है। तिब्बत से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर लाहुल स्पिती के गीयु नामक गांव में एक संत की ममी मिली है।
इस संत की ममी आज भी उसी ध्यानमग्न अवस्था में पाई गयी है। हैरानी की बात तो ये है कि इस संत की ममी के बाल और नाखून आज भी बढ़ रहे है, इसलिए एक्सपर्ट इन्हें ममी मानने से इनकार कर रहे हैं।
गाँव वालों का कहना है कि पहले यह ममी एक स्तूप में स्थापित थी परंतु इसको मलबे से निकालकर इसका परीक्षण किया गया तो पता चला की यह 550 साल पुरानी है। एक्सपर्ट का मानना है कि बिना किसी लेप लगाये और जमीन में इतने सालों दबे रहने के बाद भी इस ममी में किसी तरह की कोई खराबी नहीं हुई है।
गाँव के बड़े बुजुर्गों ने बताया कि 15वीं शताब्दी में यहां एक संत तपस्या कर रहें थे। उस समय गाँव में बिछुओं का प्रकोप था। गाँव को इस प्रकोप से बचाने के लिए ही संत ने ध्यान लगाना प्रारंभ किया। जैसे ही संत ने समाधि ली, वैसे ही गाँव में बिना बारिश के इन्द्रधनुष निकला और गाँव में बिछुओं का प्रकोप खत्म हो गया था।
कुछ लोगों का मानना ये है कि ममी बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है। तिब्बत से भारत आने के बाद वह इसी गाँव में ध्यान लगाकर बैठ गये थे और फिर कभी उठे ही नहीं। इस ममी के बाल और नाखून ही नहीं बढ़ रहे हैं, सिर से खून भी निकल रहा है।
गाँव वालों ने बताया कि खुदाई के दौरान ममी के सिर पर कुदाल लग गयी जिसके बाद उनके सिर से खून निकलने लग गया था। आज भी ममी के सिर पर चोट का निशान देखा जा सकता है।
इस ममी को एक शीशे के केबिन में रखा गया है, जिससे इस ममी को कोई नुकसान ना हों। अगर आप भी इस ममी को ध्यान से देखेंगे तो पता लग जाएगा ये ममी अभी भी ध्यान की अवस्था में है।