मंडी की अंतरराष्ट्रीय महाशिवरात्रि कई मायनों में है अनोखी, जानें रोचक इतिहास

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देव भूमि हिमाचल प्रदेश अपने धार्मिक इतिहास, त्योहारों और मंदिरों के लिए जाना जाता है इसी वजह से हिमाचल को देवभूमि (देवताओं की भूमि) की लोकप्रिय उपाधि दी है।

हिमाचल में कई मेले आयोजित किये जाते हैं जिनमें से कुछ को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है उन्हीं में से एक है मंडी में मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि मेला जोकि एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय मेला है। इस साल यह 18 फरवरी से शुरू हो रहा है और 24 फरवरी को समाप्त होगा।

महाशिवरात्रि पूरे भारत में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाई जाती है, लेकिन मंडी में मनाई जाने वाली शिवरात्रि संस्कृति और भक्ति का एक अनूठा सम्मलेन है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान और आकर्षण का केंद्र बनाता है।

भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर में शिवरात्रि के हिंदू त्यौहार से शुरू होने वाले 7 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है।

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मंडी शिवरात्रि मेला हर साल हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष के 13वें दिन मनाया जाता है, जो फरवरी/मार्च में आता है।

मंडी हिमाचली/पहाड़ी संस्कृति का गढ़ है, जो हिमाचल के मध्य में स्थित है। यह लगभग 100 मंदिरों का घर है, इसे छोटी काशी भी कहा जाता है और स्थानीय लोगों द्वारा इसे शिव नगरी माना जाता है। इसके प्रसिद्ध मंदिरों में भूत नाथ मंदिर, एकादशी रुद्र मंदिर और तरना माता मंदिर शामिल हैं।

हिमाचल में लगभग हर मोहल्ले या गांव के अपने देवता हैं। महाशिवरात्रि के भव्य उत्सव का हिस्सा बनने के लिए इन देवताओं को निमंत्रन नामक निमंत्रण भेजा जाता है।

मेले की अवधि के सात दिनों के दौरान, मंडी में पूरे हिमाचल से लगभग 200 से अधिक खूबसूरती से सजे देवी-देवताओं का आगमन होता है।

ब्यास नदी के तट पर स्थित मंडी शहर हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराने शहरों में से एक है, जिसकी परिधि में विभिन्न देवी-देवताओं के लगभग 81 मंदिर हैं।

इतिहास

इस मेले की उत्पत्ति पर सबसे व्यापक रूप से मानी जाने वाली कहानी यह है कि 1788 में, महाशिवरात्रि के समय मंडी के राजा, ऐश्वर्या सेन को कांगड़ा के राजा संसार चंद की कैद से रिहा कर दिया गया था।

राजा ऐश्वर्या सेन को सम्मान और श्रद्धांजलि देने के लिए सभी क्षेत्रीय लोग अपने देवी देवताओं के साथ मंडी पहुंचे। तब से यह परंपरा निभाई जा रही है।

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पूरा उत्सव मंडी के प्रमुख देवता माधव राय जी के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। उत्सव में शामिल होने वाले सभी देवताओं को सबसे पहले माधव राय जी को अपनी श्रद्धा अर्पित करनी होती है।

शोभा यात्रा या देवताओं के जुलूस को स्थानीय पहाड़ी भाषा में जलेब कहा जाता है। जलेब सात दिनों की त्यौहार अवधि के दौरान तीन बार बनाए जाते हैं।

जलेब की शुरुआत से पहले, माधव राय जी और अन्य देवी देवता भगवान शिव को श्रद्धांजलि देने के लिए भूत नाथ मंदिर जाते हैं और उन्हें महाशिवरात्रि का निमंत्रण दिया जाता है। मंडी के मध्य में स्थित भूतनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसे 1527 ईस्वी में राजा अजबर सेन ने बनवाया था।

बड़ा देव कमरुनाग के मंडी पहुंचने के बाद ही महाशिवरात्रि उत्सव शुरू होता है और प्रोटोकॉल के अनुसार सबसे पहले माधव राव जी मंदिर जाते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं और राज महल बेहरा में पूजा करते हैं, उसके बाद वे तरना माता के लिए निकल जाते हैं। देव कमरुनाग 7 दिनों की अपनी पूरी यात्रा के दौरान तरना माता मंदिर में रहते हैं। वह किसी जलेब में शामिल नहीं होते।

त्यौहार के कई दिलचस्प पहलू हैं जैसे छह नारोल देवी जुलूस में भाग नहीं लेती हैं। वे पूरे उत्सव के दौरान राज महल में रूपेश्वरी बेहरा में रहती हैं।

इस तरह की परंपराएं हमारे समाज की रीढ़ हैं और हमें अपनी जड़ों से जोड़ती हैं।

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