मंडी-कुल्लू के दरकते पहाड़ों से उठती आह से व्याकुल केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने फोरलेन निर्माण को ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है।
गडकरी ने मंडी- मनाली बाया कुल्लू बनाए जा रहे फोरलेन का उल्लेख करते हुए धंसती धरती के लिए डीपीआर बनाने वालों को सबसे बड़ा गुनहगार बता दिया है।
गडकरी ने कहा कि फोरलेन का निर्माण पहाड़ों के बीच में ब्यास नदी के किनारे से किया जा रहा है। यह प्रोजेक्ट तीन हजार से 35 सौ करोड़ का है। हर साल सडक़ बनाई जा रही है और हर साल ही यह सड़क बह जा रही है।
फोरलेन निर्माण पर उठते सवालों के बीच गडकरी ने एनएचएआई सहित डीपीआर बनाने वालों में से किसी को नहीं बख्शा।
गडकरी ने बिना लाग-लपेट यही कहा है कि डीपीआर बनाने वाली कंपनियों के मालिकों में से अधिकांश रिटायर्ड सरकारी अधिकारी हैं और गूगल के सहारे डीपीआर तैयार की जा रही है।
इन डीपीआर में न ही स्थानीय स्तर की कोई डिटेल है और न ही इनमें कोई अध्ययन है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि बरसात में हर साल जमीन धंस रही है और स्थानीय लोग अकाल ही काल का ग्रास बन रहे हैं।
गडकरी ने कहा कि सड़क निर्माण का काम करने वाली कंपनियां टेंडर तक में ऐसी शर्तें जुड़वा रही हैं, जिसके चलते काम किसको मिलना है, इसका भी निर्धारण हो जाता है।
सरकारी अधिकारी टेंडर में सिर्फ शर्तें लगाने तक ही सीमित रह जाते हैं और फिर नतीजा यह निकल रहा है कि न सडक़ टिक पा रही है और न ही पहाड़ मौत बांटने से परहेज कर रहे हैं।
मंत्री इतना समझ नहीं पाते हैं कि टेंडर में लगाई गई वित्तीय और तकनीकि शर्तों का मतलब क्या है। गडकरी ने कहा कि आज जरूरत दरकते पहाड़ों को समझने की है।
ब्लैक रॉक और हिमालय रेंज के पहाड़ों में टनल निकालने की संभावनाएं तलाशने की जरूरत है। गडकरी मानते हैं कि पहाड़ों के बीच से टनल बनाकर ही सफर को सुरक्षित बनाया जा सकता है।
ऐसे में पहाड़ों के बीच में से टनल बनाने की संभावनाएं तलाशने को व्यापक शोध की जरूरत है।
गडकरी का यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है और लोग मान रहे हैं कि पहली बार गडकरी ने कुल्लू-मंडी में चल रहे सडक़ निर्माण पर सच्चाई व्यक्त की है।