आज ही के दिन हुई थी विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना

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हर वर्ष 5 जून का दिन विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना 1972 में स्टाकहोम सम्मेलन के बाद हुई थी. इसी दिन विश्व के सभी देशों ने पर्यावरण जागरूकता की दिशा में सही रूप से कार्य करने हेतु प्रतिज्ञा ली थी. सबसे पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 को मनाया गया था. आज भी इस दिवस को अति महत्वपूर्ण माना जाता है.

इस वर्ष  ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ का मुख्य विषय ‘जैव-विविधता’ है। जैव-विविधता का अर्थ पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं से जोड़ा जाता है।  एक तरफ जहाँ वर्ष 2020 को इतिहास में कोरोना महामारी के लिए याद रखा जाएगा, वहीं दूसरी ओर सोशल-मीडिया पर साझा होती ‘जीवों और प्राकृतिक दृश्यों की तस्वीरें भी 2020 को हमारे मस्तिष्क से कभी उतरने नहीं देंगी।

“जैव विविधता” है विषय

इस वर्ष  ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ का मुख्य विषय ‘जैव-विविधता’ है। जैव-विविधता का अर्थ पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं से जोड़ा जाता है।  एक तरफ जहाँ वर्ष 2020 को इतिहास में कोरोना महामारी के लिए याद रखा जाएगा, वहीं दूसरी ओर सोशल-मीडिया पर साझा होती ‘जीवों और प्राकृतिक दृश्यों की तस्वीरें भी 2020 को हमारे मस्तिष्क से कभी उतरने नहीं देंगी।

लॉकडाउन में हुआ प्रदूषण कम

कोरोना-वायरस के चक्र को रोकने के लिए विश्व के अधिकतर देशों ने तालाबंदी करने का फैसला लिया है। तालाबंदी के अंतर्गत नागरिकों को घर पर ही रहने के आदेश दिए गए हैं। साथ ही वाहन और कारखानों पर भी रोक लगाई गई है। इन नियमों के कारण विश्व के अनेक देशों में प्रदूषण स्तर की निरंतर कमी देखी जा रही है।

जैव विविधता पर हैं कई संकट

जैव-विविधता तथा प्राकृतिक दृष्टि से 2020 की सकरात्मक शुरुआत तो हुई, परन्तु जैव-विविधता पर आज अनेक संकट मंडरा रहे हैं, जो अत्यंत चिंताजनक हैं। कोरोना महामारी के दौरान हर देश का पूरा ध्यान सिर्फ महामारी समाप्त करने पर रहा है। ऐसे में वनों में गैर-क़ानूनी शिकार की गतिविधियों में बढ़ोतरी देखी जा रही है।

बढ़े शिकार के मामले

भारत के असम स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में तालाबंदी के एक हफ्ते के भीतर ही 10 शिकार के मामले सामने आए थे। इसी तरह, राजस्थान में तालाबंदी के 33 दिन में 10 शिकार की घटनाएं दर्ज की गई थी। संकटग्रस्त प्रजाति जैसे चिंकारा, भारतीय गैण्डा आदि के अत्यधिक शिकार से उन जीवों के विलुप्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

कई आपदाएं भी हैं चुनौती

इस साल वन्य-जीव संरक्षण परियोजनों के बजट में कटौती होने से जैव-विविधता से जुड़े संरक्षण कार्यों में रुकावटें आना भी संभव है।  कोरोना महामारी के साथ-साथ अनेक प्राकृतिक आपदाएं भी देखने को मिल रही हैं, जो जैव-विविधता पर अपना प्रभाव डाल रही हैं।

इस साल कार्बन उत्सर्जन के कारण बढ़ रहे जल-वायु परिवर्तन का विकट रूप भी जैव-विविधता पर देखने को मिला। बदलते तापमान से समुद्री चक्रवातों में वृद्धि हुई है। कोरोना महामारी से जूझ रहे बंगाल को चक्रवात अम्फान का भी सामना करना पड़ा।

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