विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ यानी अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में की शोभा बढ़ाने के लिए काफी संख्या में देवी-देवता अठारह करडू की सौह में विराजमान हुए हैं।
इन देवी-देवताओं मुआफीदार, गैर मुआफीदार और बिना निमंत्रण वाले देवी-देवता शामिल हैं। इन देवी-देवताओं ने बड़ी संख्या में विराजमान होकर अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की शोभा बढ़ाई है।
पिछले 22 साल के इतिहास पर नजर डालें, तो पिछले दो-तीन सालों से ज्यादा देवी-देवता उत्सव में आए हैं। दशहरा उत्सव में प्रशासन के बिना निमंत्रण भी देवी-देवता भी आए हैं।
इस बार तक 300 के करीब देवी-देवता विराजमान हुए हैं। प्रशासन के रिजस्टर में इस बार अब तक मुआफीदार 149 में से 139 की एंट्री हुई है।
कुछ देवता नहीं आए और कुछ देवताओं के कारकूनों ने अभी देवता की एंट्री रजिस्टर में नहीं करवाई है। रिकॉर्ड में एंट्री अभी जारी है। जबकि इस बार गैर मुआफीदार 135 देवी-देवताओं में 130 की एंट्री हुई है, जबकि बाकी देवताओं के कारकूनों ने अभी एंट्री नहीं करवाई है।
रिकॉर्ड में एंट्री प्रक्रिया अगले दिनों भी जारी रहेगी। सूचना यह है कि बिना निमंत्रण के भी 30 के करीब देवी-देवता यहां विराजमान हुए हैं। इनकी दशहरा कमेटी के रजिस्टर में एंट्री नहीं होती है।
इस बार भी दशहरा उत्सव में विराजमान हुए देवताओं का आंकड़ा 300 के आसपास है। देवता कुई कंडा नाग तांदी 365 सालों बाद उत्सव में विराजमान हुए हैं।
नहीं बदली देव संस्कृति
देवसमागम कुल्लू विश्व में विख्यात है। 1661 ईस्वी से लेकर आज तक देवभूमि कुल्लू के देवी-देवता दशहरा उत्सव में शिरकत करते आ रहे हैं। देवी-देवताओं के हारियानों की न जाने कितनी पीढिय़ां बीत गई, लेकिन आज भी दशहरा उत्सव में आने के रिवाज को नहीं छोड़ा।
कब, कितने देवी-देवता आए
कुल्लू दशहरा में 2004 में 101 देवी-देवता आए। जबकि 2005 में 194, 2006 में 200, 2007 में 211, 2008 में 210, 2009 में 213, 2010 में 210, 2011 में 220, 2012 में 222, 2013 में 234, 2014 में 226, 2015 में 230, 2016 में 227, 2017 में 249, 2018 में 238, 2019 में 278, 2020 में 7-8, 2021 में 281, 2022 में 304, 2023 में 315, 2024 में 300 से अधिक और इस बार भी आंकड़ा 300 के आसपास का ही है।
वर्ष 1661 से हुई थी देवताओं के मेले में आने की परंपरा
1661 के बाद वर्ष 2013 में पहली बार रिकॉर्ड देवी-देवताओं ने दशहरा उत्सव में शिरकत की थी। वैसे तो उत्सव की शुरुआत वर्ष 1661 में 365 देवी-देवताओं के शिरकत करने से हुई थी।
1661 से लेकर आज तक जिला कुल्लू के देवी-देवता उत्सव में शिरकत करते आ रहे हैं। जिला प्रशासन की ओर से हर बार 332 देवताओं को निमंत्रण भेजा जाता है।