घुमारवीं में 9 लाख साल पुराने आदि-मानव के अवशेष मिले

7864
वैज्ञानिकों को नरवानर के कुछ अवशेष शिवालिक हिल्स रेंज में हरि तल्यांगर में एक खुदाई में मिले है. (सांकेतिक फोटो: James St. John / Flickr)

हिम टाइम्स|| मानव विकास पर चल रही रिसर्च में एक महत्वपूर्ण खोज हुई है. वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के घुमारवीं के पास प्राचीन, वानर की शक्ल वाले आदिम पूर्वज की एक विशेष प्रजाति के लगभग नौ लाख साल पुराने अवशेषों की खोज की है. इस नर-वानर प्रजाति के बारे में पहले यह धारणा थी की यह केवल यूरेशिया (अधिकतर यूरोप) का निवासी था. लेकिन इस खोज से पता चला है कि यह आदि-नरवानर भारत में भी रहता था.

वैज्ञानिकों को यह अवशेष शिवालिक हिल्स रेंज में हरि तल्यांगर में एक खुदाई में मिले हैं. यह स्थान घुमारवीं से 15 किलोमीटर दूर शिमला-काँगड़ा हाईवे पर स्थित है.

नौ लाख साल पुराना एक जीवाश्म एक विकसित निचले जबड़े का है जिसमें से अभी दांत निकल रहें हैं और विकसित हो रहे हैं. दोनों तरफ की दाढ़ों के मसूड़े पूरी तरह विकसित हैं लेकिन जड़ें अभी नहीं बनी हैं. इसलिए वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि ये जीवाश्म अलग-अलग उम्र के शिशु नरवानर के हैं. एक अन्य अवशेष में दाहिनी पहली दाढ़ आंशिक रूप में जबकि दूसरे अवशेष के रूप में बायीं तरफ की दूसरी मुक्कमल दाढ़ मिली है.

खोजी वैज्ञानिकों का मानना है कि वन-मानव की यह प्रजाति आजकल हिमालय और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाए जाने वाली सामान्य स्यामंग गिब्बन्स (Siamang Gibbons) प्रजाति से लगभग 15 किलोग्राम बड़ी रही होगी.

स्यामंग गिब्बन्स (Siamang Gibbons)

अवशेषों के गहन अध्ययन से पता चला कि अवशेषों के नमूने लियोपिथैकस(Pliopithecus) नामक नरवानर की प्रजाति से मेल खाते हैं. यह प्रजाति 18 लाख साल से 7 लाख साल पहले के मध्यनूतन काल(Moicene period)  में पूरे यूरेशिया में फैली हुई थी.

अवशेषों के नमूने आकार और बनावट में, 1970 के दशक में मिले ऊपर वाली तीसरी दाढ़ के नमूने, से मेल खाते हैं.  उस समय भी यह अंदाजा लगाया गया था कि यह नमूना लियोपिथैकस से संबंधित था लेकिन यह इतनी बुरी हालत में था कि इसका पूरी तरह से अध्ययन नहीं किया जा सका था. इस नमूने को पहले लियोपिथैकस कृष्णाई(Pliopithecus krishnaii) नाम दिया गया था लेकिन बाद में इसे कृष्णापिथैकस(Krishnapithecus) में बदल दिया गया था.

रिसर्च टीम में रिटायर्ड मानव विज्ञानी डॉ. अनेक राम सांख्यान, मानव विकास संस्थान और मानव विकास और सामाजिक परिवर्तन संस्थान, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी से डॉ जे केल्ली, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के मानव-विज्ञान विभाग में मानव-मूल अध्ययन केंद्र के टेरी हैरिसन शामिल हैं.

डॉ. अनेक राम सांख्यान
डॉ. अनेक राम सांख्यान

रिसर्च की खोज “Current Science” जर्नल में प्रकाशित हुई हैं. इससे पहले डॉ सांख्यान ने सन 1985 में शिवापिथैकस(Sivapithecus) नाम की प्रजाति के जीवाश्म की खोज की थी.

डॉ सांख्यान ने “इंडिया साइंस वायर” (India Science Wire) से एक बातचीत में बताया कि अभी की नवीनतम खोज और 1980 के दशक में की गयी खोज से संकेत मिलते हैं कि मध्य-नव काल (Moicene period) में यह स्थान आदि-नरमानव के लिए प्रमुख आश्रयस्थल रहा होगा.

डॉ सांख्यान घुमारवीं में रहते हैं और हरि ताल्यंगर क्षेत्र में खोज कर रहें है. भारतीय मानव-विज्ञान सर्वेक्षण विभाग से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने 2012 में पलेयो रिसर्च सोसाइटी (Palaeo Research Society) की स्थापना  की और इसी सोसाइटी के नाम से वे रिसर्च कर रहे हैं.

डॉ सांख्यान ने घुमारवीं में अपने घर पर पुराने अवशेषों और क्षेत्र में खोजे गये पाषण काल के औजारों के संरक्षण के लिए एक म्यूजियम बनाया है.

(पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया इस पोस्ट को शेयर करें और हमारे फेसबुक पेज को भी LIKE करें)

Leave a Reply