बेशक केंद्र सरकार की ओर से 21 सितम्बर के बाद स्कूल खोलने के फरमान ज़ारी तो हो गए हैं लेकिन छात्रों की स्कूल जाने की जिम्मेवारी सरकार ने अभिभावकों को दे दी है यानि अगर अभिभावक चाहे तो बच्चा स्कूल जाए न चाहे तो घर पर रहे. लेकिन अव्यवस्था के इस माहौल में बच्चों के स्कूल न जा पाने के कारण पढ़ाई पर जो असर पड़ेगा उसका जिम्मेवार कौन होगा यह बात समझ से परे है. स्कूल जाने के लिए अभिभावक की इजाजत भी लेनी होगी यानि अगर कोरोना महामारी के चलते अगर बच्चे के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हुआ तो सीधे अभिभावक ही जिम्मेवार होंगे.
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मंगलवार को 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई आंशिक तौर पर शुरू करने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) जारी कर दिया है। 21 सितंबर से कक्षाओं में पढ़ाई शुरू हो जाएगी। मंत्रालय ने कहा- स्कूल अपने यहां पढ़ाई शुरू करने का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
कक्षाएँ अलग-अलग टाइम स्लॉट में चलेंगी और कोरोना के लक्षण वाले छात्रों को एंट्री नहीं दी जाएगी। नए एसओपी के अनुसार, स्टूडेंट्स अपने शिक्षकों से मार्गदर्शन ले सकते हैं लेकिन ये उनकी स्वेच्छा पर है यानी अगर वे जाना चाहते हैं, तभी जाएं, उनपर स्कूल जाने का कोई दबाव नहीं है। इसके लिए पेरेंट्स की लिखित अनुमति जरूरी होगी।
स्कूल खोलने से पहले होगी सैनिटाइजेशन!
स्कूल खोलने से पहले पूरे परिसर, क्लासरूम, लेबोरेट्री, बॉथरूम को सैनिटाइज करवाना होगा। जिन स्कूलों को क्वारैंटाइन सेंटर के तौर पर यूज किया गया था, उन्हें अच्छी तरह सैनिटाइज करवाना होगा। 50% टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को ऑनलाइन टीचिंग और टेली काउंसिलिंग के लिए स्कूल बुलाया जा सकता है। छात्रों के लिए बायोमीट्रिक अटेंडेंस की जगह कॉन्टेक्टलेस अटेंडेंस की व्यवस्था करनी होगी।
कतार के लिए जमीन पर 6 फीट की दूरी पर मार्किंग करनी होगी। यह व्यवस्था स्कूल के भीतर और बाहर दोनों जगह होगी। बीमार विद्यार्थियों और शिक्षकों को नहीं बुलाया जाएगा स्कूल!
क्वारैंटाइन जोन से छात्र, शिक्षक या कर्मचारी स्कूल नहीं आ सकेंगे। सिम्प्टोमैटिक छात्र को स्कूल में आने की मंजूरी नहीं दी जाएगी। अगर छात्र, शिक्षक या कर्मचारी बीमार है तो उसे किसी भी हालत में स्कूल नहीं बुलाया जाएगा।