जहां पूरा देश 10 मार्च को होली उत्सव को धूमधाम के साथ आयोजित करेगा, वहीं देवभूमि कुल्लू में बंसत पंचमी से ही होली का आगाज हो गया है। बसंत पंचमी पर जहां देशभर में लोग घरों में सरस्वती मां की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं, वहीं कुल्लू आज भी अपनी अनोखी परंपराएं संजोए हुए है। यहां भगवान रघुनाथजी के साथ जुड़ी सभी परंपराओं को विधि-विधान से पूरा किया जाता है। बसंत पंचमी के साथ ही कुल्लू में भगवान रघुनाथ के दरबार पर होली का आगाज हो गया। कुल्लू में होली से करीब 40 दिन पहले ही वैरागी समुदाय के लोग भगवान रघुनाथ जी के साथ होली खेलते हैं और उनके चरणों में गुलाल चढ़ाते हैं।
निकली भव्य शोभा यात्रा
गुरुवार को बसंत उत्सव के दौरान निकली भगवान रघुनाथजी की शोभायात्रा में बड़ी संख्या में भक्तों ने भाग लिया। इस दौरान वे रथ को खींचकर एक बार फिर भगवान रघुनाथ जी के अस्थायी शिविर तक लाए। इसी के साथ भगवान रघुनाथजी के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने भी सभी परंपराएं निभाते हुए भगवान के चरणों पर गुलाल चढ़ाकर होली का शुभांरभ किया। भगवान रामचंद्र जी को होली लगाने के बाद यहां बजंतरियों पर भी गुलाल उड़ेला गया। अब 40 दिन तक मंदिर में वैरागी समुदाय रघुनाथजी के चरणों में गुलाल उड़ेलेंगे और पारंपरिक होली के गीत गाएंगे।
छबड़ीदार महेश्वर सिंह ने बताया कि रामायण में वर्णन है कि जब राम अयोध्या लौट रहे थे, तो रास्ते में भगावन रघुनाथ के मन में आया कि क्या आज भी उनका भाई भरत उसी तरह से उनसे स्नेह व प्रेम करता है, जैसा अयोध्या छोड़ने से पहले करता था। ऐसे में भगवान राम ने हनुमान को यह जानने के लिए अयोध्या भेजा। हनुमान जी ने वहां देखा कि भरत आज भी भगवान राम के चरण पादुकाओं के पास बैठे उन्हें याद करते हैं और भाई से बिछड़ने का वही दर्द आज भी है। यह सब देख हनुमान लौटकर भगवान राम को सब कुछ बता देते हैं। इसके बाद अयोध्या में भरत मिलाप होता है। ठीक उसी तरह कुल्लू में भी बंसत पंचमी पर इसी तरह का देखने को मिलता है। इस दौरान हनुमान जी जिसे भी रंग लगाते है, उसे भी बेहद शुभ माना जाता है।