शिमला: हिमाचल सरकार के फैसले के बावजूद राज्य के क्षेत्राधिकार में बिजली बना रहे उत्पादक वाटर सेस देने को तैयार नहीं हैं।
हाल ही में राज्य सरकार द्वारा बनाई गई ऊर्जा सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी के साथ बैठक में भी तीनों कैटेगरी के बिजली उत्पादक वाटर सेस का भुगतान करने को तैयार नहीं थे।
हैरानी की बात यह है कि बिजली उत्पादकों ने वाटर सेस की दर कम करने पर भी सुझाव नहीं दिए। यह बैठक ऊर्जा सचिव राजीव शर्मा की अध्यक्षता में हुई थी। इस बैठक के लिए सभी 172 बिजली उत्पादकों को बुलाया गया था।
शानन बिजली प्रोजेक्ट संभाल रही पंजाब सरकार की कॉरपोरेशन भी इस बैठक में आई थी। केंद्र सरकार की पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग कंपनियों जैसे एसजेवीएन, एनएचपीसी इत्यादि ने राज्य सरकार को सिर्फ यह कहा कि वे सभी भारत सरकार से वाटर सेस के खिलाफ आए पत्र से सहमत हैं और भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार ही काम करेंगे।
हिमाचल के बड़े प्रोजेक्ट चला रहे स्वतंत्र विद्युत उत्पादकों ने भी कहा कि यह मामला सब-ज्यूडिस है और कोर्ट के फैसले का ही इंतजार करना चाहिए।
जब तक कोर्ट से फैसला नहीं होता, तब तक वाटर सेस का भुगतान नहीं किया जाएगा। इसके बाद बचे लघु विद्युत उत्पादक।
इनका उत्तराखंड फार्मूले के आधार पर कहना था कि छोटी बिजली परियोजनाओं पर आखिर यह सेस लगाया ही क्यों गया? उत्तराखंड सरकार भी इसे रिफंड करती है।
इनका एक और तर्क था कि बिजली बोर्ड जिस रेट में उनकी बिजली खरीदता है, कई प्रोजेक्टों में उससे ज्यादा वाटर सेस बन रहा है। ऐसे में यह प्रोजेक्ट अनवायबल हो जाएंगे।
सभी ने एक सुर में इसका विरोध किया। हालांकि इस मामले में 28 जून को हाई कोर्ट में केस लगा हुआ है और इस केस का क्या होता है? इसके बाद ही सरकार अगला कदम उठाएगी।
चेयर पर्सन और चार सदस्यों की सैलरी तय
बुधवार को हाई कोर्ट में वाटर सेस से संबंधित केस की सुनवाई है, दूसरी तरफ ठीक इससे पहले वाटर सेस कमीशन के गठन की अधिसूचना राज्य सरकार ने जारी कर दी है। इसमें एक चेयरपर्सन और चार मेंबर लगाए जा रहे हैं।
चेयरपर्सन का वेतन 135000 रुपए तय किया गया है, जबकि सदस्यों को 120000 रुपए वेतन मिलेगा। यदि इन पदों पर कोई सेवारत अधिकारी आता है, तो आखिरी सैलरी माइनस पेंशन के फार्मूले से भुगतान होगा।