आखिरी गोली और आखिरी सांस तक डटे रहे प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा

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आज भारत देश के मूकुट कश्मीर का जो हिस्सा भारत के पास है, उसका श्रेय जिन वीरों को है, उनमें से वीरभूमि हिमाचल के मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम सबसे आगे है। हाथों में पहले से ही प्लास्टर होने के बाबजूद मेजर सोमनाथ घायल अवस्था में ही 700 पाकिस्तानियों को अपनी बटालियन के साथ अपनी आखिरी गोली और आखिरी सांस तक खदेड़ते रहे और देश के लिए अपने प्राणों की आहुति सर्वोच्च बलिदान देकर शहीद हुए।

 

 

परमवीर चक्र भारत का सबसे बड़ा सैन्य पुरस्कार है। आजाद भारत के इतिहास में अभी तक केवल 22 लोगों को यह पुरस्कार मिला है। भारत का पहला परमवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा को 1947 को मरणोपरांत प्रदान किया गया था।

हाल ही में 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंयती के उपलक्ष्य में पराक्रम दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 सबसे बड़े द्वीपों का नामकरण किया।

इन द्वीपों का नाम 21 परमवीर चक्र से सम्मानित 21 परमवीरों के नाम पर रखा गया है। पहले इन द्वीपों का कोई नाम नहीं था, लेकिन अब ये द्वीप देश के असली नायकों के नाम से जाने जाएंगे।

सबसे बड़े द्वीप का नाम देश के पहले परमवीर हिमाचल प्रदेश के मेजर सोमनाथ शर्मा के नाम पर रखा गया। इसी तरह कुल 21 द्वीपों का नाम 21 परमवीर सैनिकों के नाम पर रखा गया है।

इसमें वीरभूमि हिमाचल प्रदेश के लिए गौरव के क्षण है कि चार परमवीर चक्र विजेताओं के नाम से द्वीपों के नाम रखे गए हैं, जिनमें मेजर सोमनाथ शर्मा के अलावा, लेफ्टिनेंट कनर्ल धन सिंह थापा, कैप्टन विक्रम बत्तरा, सूबेदार मेजर तत्कालीन राइफलमैन संजय कुमार के नाम भी रखे गए हैं।

मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी, 1923 को हुआ था। वह हिमाचल की चाय नगरी पालमपुर एवं प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री चांमुडा देवी के पास स्थित डाढ गांव के रहने वाले थे।

भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे, जिन्होंने अक्तूबर-नवंबर, 1947 के भारत-पाक संघर्ष में अपनी वीरता से शत्रु के छक्के छुड़ा दिए।

15 अगस्त, 1947 को भारत के स्वतंत्र होते ही देश का दुखद विभाजन भी हो गया। इसी दौरान तीन नवंबर 1947 ने पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमला कर दिया।

इस समय मेजर शर्मा के दाएं हाथ में फ्रैक्चर था, फिर भी वह युद्ध में गए। मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी में उस समय कुल 50 जवान थे।

मेजर सोमनाथ जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए गोलियों की बौछार के सामने खुले मैदान में एक मोर्च से दूसरे मोर्चे पर जाकर जवानों का हौसला बढ़ा रहे थे।

शहीद होने से पहले मेजर शर्मा ने ब्रिगेड मुख्यालय को भेजे आखिरी संदेश में कहा था। दुश्मन हमसे केवल 50 गज दूर है, दुश्मन की संख्या हमसे बहुत ज्यादा है।

हमारे ऊपर तेज हमला हो रहा है। लेकिन जब तक हमारा एक भी सैनिक जिंदा है, और हमारी बंदूक में एक ही गोली है, हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे। आंखिरी सांस व आंखिरी गोली तक लड़ेंगे।

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