बारिश और बर्फ़बारी न होने के कारण हिमाचल में किसान व बागवान परेशान

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हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन महीने से बारिश और बर्फबारी न होने के कारण बागबानों की परेशानी बढ़ गई है। नवंबर और दिसंबर महीने में नए पौधे लगाने और पुराने पौधों की गुड़ाई करने का सही समय होता है, लेकिन यह काम भी तभी शुरू होता है जब बारिश होती है और बागीचों में नमी होती है।

लेकिन तीन महीने से बारिश न होने के कारण बागीचों की नमी खत्म हो गई है। पौधों में कैंकर रोग लगने लग गया है। टहनियां सूखने लगी है।

इससे अब पुराने पौधों को बचाना भी बागबानों के लिए चुनौती बन गया है। सूखे की मार के कारण बागबान न तो तौलिए कर पा रहे हैं और न ही पौधों में खाद्य या गोबर डाल पा रहे हैं।

बागबानों को चिंता सताने लगी है कि कहीं सूखा लंबा चला तो चिलिंग ऑवर्स पूरे न होने से सेब उत्पादन में कमी आ सकती है।

क्योंकि सेब के पौधों के लिए दिसंबर का महिला चिलिंग आर्वस के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि इसकी प्रक्रिया नवंबर से शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार तीन महीने से बारिश ही नहीं हुई है और बर्फबारी का तो कहीं नाम ही नहीं है। ऐसे में दिसंबर महीने में बारिश और बर्फबारी नहीं होती है, तो चिलिंग आर्वस पूरा होना पौधों के लिए संकट बन जाएगा।

सेब के पौधों की सिंचाई जरूरी
बागबानी विशेषज्ञों ने बागबानों को सलाह दी है कि जहां पर सिंचाई की व्यवस्था हो सकती है वह करना शुरू कर दें। सेब के पौधों को इन दिनों नमी की बहुत जरूरत है। ऐसे में इन दिनों पौधों को पानी देना यानी सिंचाई करना बहुत जरूरी हो गया है।

जमीन से नमी गायब
दिसंबर में बागीचों में फास्फोरस और पोटाश खाद डाली जाती है, लेकिन इसके लिए जमीन में नमी होना जरूरी है। इन खादों से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मजबूत होती है। समय पर बर्फबारी और बारिश न होने से आगामी समय में करोड़ों के सेब कारोबार पर संकट खड़ा हो सकता है।

सेब उत्पादन पर पड़ेगा असर
बता दें कि सेब के पौधों के लिए सात डिग्री से कम तापमान में 1000 से 1200 घंटे चिलिंग ऑवर्स की जरूरत रहती है। चिलिंग ऑवर्स पूरे न होने इसका असर फ्लावरिंग पर पड़ता है।

पौधों में एक समान फ्लावरिंग नहीं होती। कमजोर फ्लावरिंग से फूल झड़ जाते हैं। इससे सेब उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

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