हिमाचल में हरित आवरण में वृद्धि के लिए राज्य सरकार ने 100 करोड़ रुपए की राजीव गांधी वन संवर्धन योजना शुरू की है।
इस योजना में जन सहभागिता सुनिश्चित करते हुए रोज़गार के अवसर सृजित किए जा रहे हैं जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी।
प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि पारंपरिक पौध रोपण मॉडल के स्थान पर इस योजना के तहत महिला मंडलों, युवक मंडलों, स्वयं सहायता समूहों और अन्य पंजीकृत समुदाय-आधारित संगठनों को शामिल कर जनसहभागिता से पौध रोपण सुनिश्चित किया जा रहा है।
यह समूह बंजर वन भूमि क्षेत्रों में पौधरोपण और रख-रखाव जैसी गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वन क्षेत्र में विस्तार के साथ-साथ इस योजना से राज्य भर के हज़ारों ग्रामीणों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर प्राप्त होंगे।
उन्होंने कहा कि राजीव गांधी वन संवर्धन योजना प्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। यह योजना जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिक तंत्र और ग्रामीण समुदायों के आर्थिक उत्थान में सहायक सिद्ध होगी।
योजना के तहत पारिस्थिकीय आवश्यकता व पहुंच के आधार पर प्रत्येक समुदाय आधारित संगठन को 5 हेक्टेयर तक खाली अथवा बंजर वन भूमि आवंटित की जाएगी।
वन विभाग अपनी नर्सरियों से गुणवत्तायुक्त पौधों की आपूर्ति सुनिश्चित करेगा और सफल पौधरोपण सुनिश्चित करने के लिए नियमित निगरानी और मूल्यांकन सुनिश्चित करेगा।
इस योजना की सफलता के लिए प्रत्येक समुदाय आधारित संगठन को प्रति हेक्टेयर 1.20 लाख रुपए या भूमि के क्षेत्रफल के अनुपात में धनराशि प्रदान की जाएगी।
एक हेक्टेयर से छोटे क्षेत्रों के लिए धनराशि आनुपातिक आधार पर दी जाएगी। इसके अतिरिक्त, रोपे गए पौधों की सत्यापित जीवित प्रतिशतता दर के आधार पर 1.20 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी।
पौधों की जियो-टैगिंग और वास्तविक समय की निगरानी के लिए एक समर्पित पोर्टल का उपयोग किया जाएगा और सभी भुगतान इलेक्ट्रॉनिक रूप से समुदाय आधारित संगठनों के बैंक खातों में किए जाएंगे, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
प्रवक्ता ने कहा कि इस योजना का उद्देश्य न केवल कार्बन पृथक्करण, जल संरक्षण और मृदा स्थिरीकरण में सुधार के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना है अपितु आजीविका के अवसर पैदा कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना है।
इससे वन बहाली में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से स्थानीय समुदाय सशक्त होंगे, स्थानीय प्रजातियों के पौधरोपण से जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा और लोगों में वन संरक्षण के प्रति जागरूकता आएगी।