शिमला में कहर बरपा रहे अंग्रेजों के जमाने में लगाए देवदार के पेड़, वन विभाग के हाथ भी खड़े

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शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में अंग्रेजों के जमाने में लगाए गए देवदार के पेड़ अब शहरवासियों पर कहर बनकर टूट रहे हैं। हरे पेड़ों को काटने पर लगी पाबंदी के कारण उम्र पूरी होने के बावजूद देवदार के हजारों पेड़ शहर में खड़े हैं।

ये अब आम जनता के लिए खतरनाक होते जा रहे हैं। इनसे न सिर्फ शहर में जान और माल को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि इनके कारण नए पौधे भी नहीं पनप पा रहे हैं। इस मानसून सीजन में ही 500 से ज्यादा पेड़ गिर चुके हैं। 300 से ज्यादा पेड़ खतरा बनकर मंडरा रहे हैं।

वन विभाग के अनुसार शिमला से सटे जंगलों और रिहायशी कालोनियों के बीच खड़े देवदार के हजारों पेड़ काफी पुराने हो गए हैं। इनमें कई पेड़ों की आयु 100 साल से भी ज्यादा है।

देवदार के एक पेड़ की औसतन आयु 120 साल होती है। हालांकि, शिमला शहर में ही कई जगह ऐसे पेड़ भी हैं, जो 160 साल पुराने हैं। ब्रॉकहॉस्ट सड़क के पास कई हरे पेड़ 160 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। जाखू, बैनमोर में भी कई पेड़ 120 साल पुराने हैं। अंग्रेजों के जमाने में शहर में ये पौधे लगाए गए।

आमतौर पर किसी भी प्रजाति के पेड़ों की उम्र पूरी होने पर उनका कटान किया जाता है। वन विभाग के अनुसार कई राज्यों में इसका प्रावधान भी है। लेकिन हिमाचल में 80 के दशक के बाद से हरे पेड़ों के कटान पर पूर्ण पाबंदी लगी है।

इसके चलते वन विभाग इन्हें नहीं काटता। हालांकि, पेड़ ढहने का कारण सिर्फ इनकी उम्र पूरी होना ही नहीं है। शहर में बेतरतीब निर्माण और जगह जगह खुदाई के कारण भी ज्यादातर पेड़ ढह रहे हैं।

Deodar trees planted during British era are wreaking havoc Shimla

आंकड़ों की नजर में शिमला के जंगल

शिमला शहर में 842.78 हेक्टेयर वनभूमि पर हैं देवदार के जंगल
इस वनभूमि पर देवदार समेत कई प्रजातियों के 2.60 लाख पेड़ हैं
निजी जमीन पर 38 हजार तो अन्य भूमि पर 32 हजार पेड़ हैं

नए देवदार के पौधों की विकास दर थमी

पुराने बड़े देवदार के पेड़ों के कारण शहर से सटे जंगलों में नए पौधे बढ़ने की दर भी थम गई है। देवदार का पौधा हर साल 10 से 12 सेंटीमीटर तक बढ़ता है, लेकिन शहर के कई जंगलों में यह बढ़ोतरी महज एक से दो सेंटीमीटर तक सिमट गई है।

घने जंगल में कई जगह इनकी टहनियों का फैलाव इतना ज्यादा है कि इनके नीचे उगने या लगाए जाने वाले पौधे बढ़ नहीं पा रहे हैं। बड़े पेड़ों के कारण इन्हें कभी धूप नसीब नहीं होती। हवा और पानी की भी कमी हो जाती है।

निजी जमीन पर कटते हैं एक तिहाई पेड़

निजी जमीन पर खड़े कुछ प्रजातियों के पेड़ काटने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, यह कटान दस साल में एक बार होता है। इसमें भी उम्र पूरी कर चुके पेड़ों में एक तिहाई पेड़ों को ही काटने की अनुमति मिलती है। डीएफओ शिमला कृष्ण कुमार ने बताया कि प्रदेश में हरे पेड़ों को काटने पर पाबंदी है। फिर चाहे उनकी उम्र ही पूरी क्यों न हो।

 

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