पुष्पा फिल्म की तरह नदी में बहकर आई लकड़ी की सीआईडी जांच

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हिमाचल प्रदेश में हाल ही में बादल फटने की घटनाएं पेश आई हैं। इस बरसाती आपदा में कई जानें चली गईं, जबकि करोड़ों रुपए की संपत्ति पानी में बह गई। इसी बीच बरसाती आफत के बीच हिमाचल में एक नई तस्वीर सामने आई थी, जिसने सभी को चौंका दिया था।

वह थी, बादल फटने के बाद आई बाढ़ में कागज की तरह बहती लकडिय़ों की। जानकारी के अनुसार कुल्लू में पिछले दिन बादल फटने के बाद भयंकर बाढ़ आई थी।

इस बाढ़ में जंगल की बेशकीमती लकड़ी भी बहकर आ गई थी। माना जा रहा था कि यह लकड़ी जंगल में काटी गई होगी, जिसे उठाने का वन माफिया को मौका तक नहीं मिला।

यह खबर नेशनल मीडिया की सुर्खियां भी बना था और हर न्यूज चैनल पर खबर चल रही थी कि आखिर इस बेशकीमती लकड़ी का मालिक कौन है।

क्या वन माफिया ने अवैध कटान किया था, जिसे फिर जंगल में छिपाकर रखा गया था। सोमवार को मुख्यमंत्री सुक्खू ने निर्देश जारी किए कि 24 जून को बादल फटने के बाद आई बाढ़ के बाद लकडिय़ां बहकर पंडोह डैम तक पहुंची थीं।

जांच यह पता लगाया जाएगा कि लकडिय़ां कहां से आईं, वन विभाग की थीं या किसी और की। बता दें कि कुल्लू की गड़सा घाटी में बादल फटने के बाद बड़े पैमाने पर लकड़ी बहकर पंडोह डैम में पहुंच गई थी, जिसे लेकर खुद कांग्रेस के विधायक ने आरोप लगाए थे, तो वहीं विपक्ष ने भी इस पर हल्ला किया था।

वन विभाग ने दी थी क्लीन चिट
शिमला। पंडोह डैम में बहकर आई लकड़ी पर अवैध कटान होने के आरोपों को वन विभाग की रिपोर्ट में खारिज कर दिया था। वन विभाग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी है और इसमें साफ कहा है कि यह लकड़ी अवैध कटान का प्रतीक नहीं है।

वन बल प्रमुख समीर रस्तोगी ने मामले की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट सरकार को भेजी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जंगल में कोई भी अवैध कटान नहीं हुआ है, जो लकड़ी बहकर आई है, ये सब बालन की लकड़ी है, जो जंगलों में गिरी हुई थी।

रिपोर्ट में बताया गया है शिलागढ़ में जिस जगह बादल फटा है, उससे करीब 20 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। 6,000 हेक्टेयर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के वन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा है।

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में जो पेड़ गिर जाते हैं उसे उठाया भी नहीं जाता। वह पेड़ वहीं सड़ जाते हैं। ऐसे में विभाग दावा कर रहा है कि यहां पर जो पुराने पेड़ थे वह भी बहकर नदी में आए हैं।

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