पहाड़ी वजीर : देव पशाकोट की महिमा

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चौहार घाटी : चौहार घाटी के प्रसिद्ध आराध्य देव श्री पशाकोट मंदिर जोगिन्दर नगर से 31 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर लोहारडी से 10 -15 किलोमीटर की दूरी पर मराड़ नामक स्थान पर स्थित है.

मंदिर से जुड़ी है एक पुरातन कथा

देव पशाकोट मंदिर से एक पुरातन कथा जुडी हुई है. बहुत समय पहले एक लडकी मराड़ में पशुओं को चराने जाती थी. वहीं पर एक सरोवर था. वह लडकी वहाँ पर पानी पीती थी. जब भी वह लडकी उस सरोवर में पानी पीती तभी कहीं से आवाज सुनाई देती – गिर जाऊँ, गिर जाऊँ इसी तरह दिन बीतते गये और लडकी कमजोर होती गई. एक दिन लडकी की माँ ने उससे पूछा बेटी तुम दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही हो.

 

लड़की ने माँ को बताई सारी बात

लडकी ने सारी बात अपनी माँ को बताई. माँ ने बेटी से कहा, तुम कहना की गिर जाओ. अगले दिन लडकी पशुओं को लेकर उसी जगह चली गई. वह सरोवर में पानी पीने ही लगी थी की आवाज आई गिर जाऊँ लडकी ने कहा, गिर जाओ.

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पानी में बहती लड़की पहुंची टिक्कन

लडकी के ये कहते ही पहाड़ गिर गया. मूसलाधार बारिश हुई और वहाँ से लडकी गायब हो गई. लडकी पानी में बहती हुई टिक्कन आ पहुंची. इसी जगह नदी के किनारे देव- पशाकोट मंदिर है. कहा जाता है कि पशाकोट देव ने उस लडकी से विवाह किया था. बहुत दिनों के बाद वह लडकी अपनी माँ के घर गई। लडकी ने अपनी माँ को सारा वृतांत सुनाया.

लड़की ने दिया सांपों को जन्म

लडकी ने अपनी माँ के घर में ही सांपों को जन्म दिया. यह देखकर लडकी की माँ डर गई और उसने उन सांपों को मारना चाहा लेकिन देखते ही लडकी और सांप वहाँ से गायब हो गये. लडकी और सांप टिकन आ पहुंचे। यहीं सांप देव महानाग, देव अजियापाल, देव ब्रहमा आदि के नाम से प्रसिद्ध है. मान्यता है कि देव पशाकोट सांप का रूप धारण करके नदी से होके अपने ढोल – नगाड़ों के साथ मराड़ जातें हैं. प्रत्येक तीन साल के बाद मराड़ में मेला होता है.

मराड़ में जाना है जरूरी

लोहारडी के आस – पास ग्यारह गाँव है. प्रत्येक गाँव के हर घर के एक सदस्य को मराड़ में जाना जरूरी है. लोग यहाँ पर जाकर चढावा चढाते है. जो लोग यहाँ पर मन्नत मागतें है देव पशाकोट उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. यहाँ के स्थानीय लोगों में यह देव पशाकोट बहुत प्रसिद्ध है.

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सुनाई देती है ढोल नगाड़ों की आवाज

मराड़ में एक फटा हुआ पत्थर है जिस में सांप दिखाई देते है. जब देव पशाकोट मराड़ से नदी में से ढोल – नगाड़ों के साथ टिक्कन वापिस आतें है तो स्थानीय लोगों को ढोल – नगाड़ों की ही आवाज सुनाई देती है कुछ दिखाई नही देता है. देव पशाकोट जब मराड़ से टिक्कन वापिस आतें हैं तो वे कुछ लोगों को सांप के रूप में दर्शन देतें हैं लोग इनके दर्शनों को टिक्कन भी जातें हैं.

प्रकृति की छाँव में हैं देव पशाकोट विराजमान

टिक्कन में देव पशाकोट का मंदिर सुंदर व घने देवदार वृक्षों के नीचे लकड़ी का बना हुआ है. दूर -दूर से लोग मनचाही कामनाओं की पूर्ति के लिए यहाँ नतमस्तक होते हैं.

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