ये हैं देवभूमि हिमाचल के 5 प्रसिद्ध मंदिर, जानिए क्या है इनका इतिहास

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हिमाचल प्रदेश के देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां देवी-देवताओं के हजारों मंदिर स्थित हैं। प्रत्येक मंदिर अपने आप में पौराणिक इतिहास समेटे हुए है। आज हम आपको ऐसे ही 5 मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जोकि प्रदेश व देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में वर्षभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

1.ज्वालाजी मंदिर
ज्वालामुखी देवी के मंदिर को जोता वाली माता का मंदिर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जीभ के साथ माता सती की दिव्य ज्योति भी इस स्थान पर गिरी, इसी कारण है कि यहां 9 ज्वालाएं प्रकट हुईं, जो आज भी निरंतर प्रज्ज्वलित हैं। इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया। बादशाह अकबर ने इस मंदिर के बारे में सुना तो वह हैरान हो गया। उसने मंदिर में प्रज्वलित इन ज्वालाओं को पानी डालकर बुझाने की कोशिश की। इन ज्वालाओं को लोहे के तवे से भी ढका गया लेकिन ज्वाला के प्रभाव से तवे में भी छेद हो गया। अंततः उसे हार मान कर ज्वाला जी मंदिर से वापस लौटना पड़ा। देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है।

माँ ज्वाला जी मंदिर काँगड़ा

2.नयनादेवी मंदिर
माता श्रीनयनादेवी जी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित एक भव्य मंदिर है। नयनादेवी मंदिर उस स्थान पर बनाया गया है जहां देवी सती की आंखें गिरी थीं। मान्यता है कि जब भगवान शिव सती का शव लेकर तांडव कर रहे थे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को अनेक भागों में काट दिया। इसके परिणामस्वरूप माता सती के नैन (आंखें) यहां गिरे थे और यहां पर माता नयनादेवी का मंदिर बना। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेकों शताब्दी पुराना है। यहां हैरान कर देने वाली बात यह है कि मंदिर में स्थित हवन कुंड हमेशा चलता रहता है जोकि कभी शांत नहीं हुआ और न ही आज तक इसमें से शेष निकाला गया। इस पवित्र तीर्थ स्थान पर वर्षभर तीर्थयात्रियों और भक्तों का मेला लगा रहता है, खासकर श्रावण अष्टमी के दौरान और चैत्र एवं अश्विन के नवरात्रों में यहां देश के अन्य कोनों से लाखों श्रद्धालु आते हैं।

श्री नैना देवी मंदिर बिलासपुर

3.चामुंडा देवी मंदिर
चामुंडा देवी मंदिर कांगड़ा जिला में स्थित है। यहां पर भगवान शिव भी पिंडी रूप में स्थापित हैं, इसलिए इस जगह को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। मां शक्ति स्वरूपा मां चामुंडा का नाम चंड-मुंड नाम के राक्षसों का संहार करने के बाद पड़ा है। बनेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है। यहां पर आकर श्रद्धालु अपनी भावना के पुष्प मां चामुंडा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। देश के कोने-कोने से भक्त यहां आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह मंदिर 16वीं शताब्दी में बनाया गया है।

श्री चामुंडा देवी मंदिर काँगड़ा

4.बज्रेश्वरी देवी मंदिर

हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता भगवान शिव के रूप भैरव नाथ के साथ विराजमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। मां का यह धाम नरगकोट के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वर्णन दुर्गा स्तुति में किया गया है। मंदिर के पास में ही बाण गंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है। इस मंदिर में सालभर भक्त मां के दरबार में आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों मंदिर की शोभा देखने लायक होती है। मंदिर में आकर भक्त की हर तकलीफ दर्शन मात्र से दूर हो जाती है। माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। बताया जाता है कि पांडवों ने मां को सपने में बताया था कि वह कांगड़ा जिले में स्थित हैं। इसके बाद पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया।

श्री ब्रजेश्वरी देवी मंदिर काँगड़ा

5.चिंतपूर्णी मंदिर

हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में मां चिंतपूर्णी देवी का मंदिर स्थित है। शिवपुराण की कथा के अनुसार जब भगवान शिव माता सती के शव के साथ तीनों लोकों में जा रहे थे तो तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने चक्र से अलग कर दिया था। जिन पवित्र स्थानों पर सती के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते हैं। मान्यता है कि इसी स्थान पर माता सती के पैर के अंग गिरे थे। ये छिन्नमस्तिका देवी का स्थान भी है, इसलिए माता चिंतपूर्णी’ को छिन्नमस्तिका धाम के नाम से भी जाना जाता है। चिंतपूर्णी का अर्थ है चिंता को दूर करने वाली देवी। माता श्री छिन्नमस्तिका देवी के चरण कमलों में प्रार्थना करने के वर्षभर भक्त यहां आते रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई सच्चे मन से मां से कुछ मांगता है तो उसकी इच्छा पूरी होती है।

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