सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल में वन भूमि पर लगाए सेब के पेड़ों के कटान पर रोक लगा दी है। वन भूमि पर लगाए गए सेब के पेड़ों को राज्य सरकार खुद देखेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि सरकारी भूमि पर कब्जा कर लगाए गए पेड़ों से फलों की नीलामी करनी होगी।
सेब के पौधे काटे नहीं जाएंगे। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया है तो दूसरी तरफ अभी बेदखली का मामला कायम है।
इसके विरोध में मंगलवार को बड़ी संख्या में सेब उत्पादक शिमला में सचिवालय के घेराव को पहुंचेंगे। शिमला के पूर्व उपमहापौर टिकेंद्र सिंह पंवर ने एक अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर हाईकोर्ट के पेड़ कटान के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद इस पर फैसला आया है कि सेब के पेड़ों को न काटा जाए। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सेब के कटान पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले के बाद ऊपरी शिमला के कई हिस्सों में वन भूमि पर लगाए गए सेब के पेड़ों का कटान किया जा रहा था। फलों से लदे हजारों सेब के पौधे काट दिए गए हैं व अभी भी प्रक्रिया जारी है।
हाई कोर्ट ने यह कहा है कि न केवल शिमला जिला में बल्कि प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों में भी वन भूमि पर लगाए गए ऐसे पेड़ों को काटा जाए। अब उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद इस पर रोक लग गई है।
प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर करीब 4500 सेब के पौधे काटे जा चुके हैं। करीब 3800 बीघा वन भूमि में लगाए गए पौधों को काटने का आदेश था जो अब नहीं काटे जाएंगे।
फलों से लदे पेड़ों को काटने का लोग विरोध कर रहे थे लेकिन वन विभाग हाईकोर्ट के निर्देश अनुसार लगातार कार्रवाई कर रहा था। इस मसले पर वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष चंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से मामले की पैरवी की।
टिकेंद्र पंवर की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट के 2 जुलाई के आदेश मनमाने, असंवैधानिक और पर्यावरणीय सिद्धांतों के खिलाफ है। सेब के फलों से लदे पेड़ काटना तर्कसंगत नहीं है।
याचिका में कहा गया कि बरसात के मौसम में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से हिमाचल में लैंडस्लाइड और भूमि कटाव का बड़ा कारण हो सकती है।
हिमाचल में काटे जा रहे सेब के बगीचे राज्य की आर्थिकी की रीढ़ और सैकड़ों परिवारों की आजीविका है।