हिमाचल की पंचायतों में प्रदेश सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन करते हुए तीन बड़े बदलाव कर दिए हैं। नए नियमों की अधिसूचना से ये बदलाव लागू हो गए हैं। इसके साथ ही बीपीएल चयन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
बीपीएल परिवारों के चयन में धांधली और भाई भतीजावाद की शिकायतें आती रहती थीं। इस धांधली रोकने के लिए नई अधिसूचना जारी की गई है।
नई अधिसूचना में ग्राम सभा द्वारा चयन के बाद एसडीएम, बीडीओ व पंचायत निरीक्षक की समिति, चयनित लोगों के दस्तावेजों को जांचेगी कि क्या जरूरतमंद लोगों का चयन हुआ है।
यदि किसी जरूरतमंद व्यक्ति को ग्राम सभा से शामिल नहीं किया गया, तो वह भी अपील कर सकता है। बीपीएल का चयन पहले भी पंचायत (ग्राम सभा) करती थी, अब भी ग्राम सभा ही करेगी।
नई अधिसूचना में फर्क सिर्फ इतना आया है कि बीडीओ व एसडीएम की कमेटी सुनिश्चित करेगी कि गलत लोगों का चयन न हो और सही लोग छूट न जाएं। पंचायतों की शक्ति पहले की तरह ही है।
प्रदेश के कई जिलों से आए दिन ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे थे कि पंचायत द्वारा वास्तविक दरों से काफी ज्यादा दरों पर सामग्री खरीदी जाती है, जबकि उसी सामग्री की बाजार दरें कम होती हैं।
ग्राम पंचायतों द्वारा दावा किया जाता है कि निविदाओं के कारण ऐसी दरें स्वीकृत हुईं। इससे ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
नई अधिसूचना के अनुसार सामग्री विक्रेता सूचीबद्ध किए जाएंगे। सूचीबद्ध करते समय प्रचलित बाजार दरों का ध्यान रखा जाएगा और बाजार दरों से अधिक दरों पर विक्रेता स्वीकृत नहीं किए जाएंगे।
गौर हो कि विक्रेता का चयन पहले भी पंचायत प्रधान खुद करते थे, अब भी खुद ही करेंगे। नई अधिसूचना में सिर्फ इतना अंतर आया है कि विकास खंडों से विक्रेताओं का एम्पैनल बनेगा।
उसके बाद ग्राम पंचायत की अपनी मर्जी है कि स्वीकृत दरों पर किस वेंडर से सामग्री खरीदनी है। विकास खंडों में दरें स्वीकृत करने वाली समिति में भी पंचायत प्रधान सदस्य हैं।
यदि कुछ सामग्रियों में ग्राम पंचायतों को लगता है कि विकास खंड से स्वीकृत दरें ज्यादा हैं, तो ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायतें खुद भी निविदाएं आमंत्रित करके ब्लॉक से कम दरों को स्वीकृत कर सकती हैं।
विक्रेता लोगों को भी इस अधिसूचना से कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि बाजार दरों पर ही सामग्री खरीदी जानी है, जिन दरों पर वे लोग सामग्री बेच ही रहे हैं।
प्रदेश सरकार के इस व्यवस्था परिवर्तन से सामग्री की दरों पर नियंत्रण होने से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा। ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार पर भी बहुत अंकुश लगेगा।
राज्य का भी काफी पैसा बचेगा व कम दरों में काम हो जाएंगे। प्रदेश में कई जगहों से विभाग को शिकायतें मिल रही थीं कि मुख्य बाजारों में पंचायतों की दुकानों को औने-पौने दामों पर भाई-भतीजावाद के तहत किराए पर दिया हुआ है।
जैसे बाजार में किसी दुकान का किराया 10,000 रुपए प्रतिमाह है, लेकिन ग्राम पंचायत ने 100 रुपए प्रतिमाह पर किराए पर दे रखी हैं। कुछ जगह तो 20-30 सालों से किराए में बढ़ोतरी नहीं की गई है।
नई अधिसूचना के अनुसार अब ग्राम पंचायतों की किराए पर दी गई संपत्तियों की समीक्षा की जाएगी और दोबारा अनुबंध किए जाएंगे तथा बाजार दरों पर किराया लिया जाएगा।
ग्राम पंचायत की संपत्तियों को किराए पर देने की शक्ति पहले भी एसडीएम, बीडीओ पंचायत निरीक्षक, प्रधान पंचायत सचिव की कमेटी के पास थी और अब भी इसी समिति के पास है।
पंचायत प्रधान पहले भी इस कमेटी का भाग थे और अब भी हैं। इसमें कोई परिवर्तन नहीं है। प्रचलित बाजार दरों पर किराया होने से सरकार व ग्राम पंचायतों की आय में काफी वृद्धि होगी।
पंचायतें आत्मनिर्भर बनेंगी और सरकार का काफी पैसा भी बचेगा।