जोगिन्दरनगर: जोगिन्दरनगर शहर से आठ किलोमीटर दूर एक पवित्र झील है जो मछलियों के देवता मछिन्द्र नाथ को समर्पित है. यह पवित्र झील मच्छयाल यानि “मछलियों की आल” के नाम से जानी जाती है.
ताज़ा पानी की बहती रणा-खड्ड जलधारा पर बनी यह झील स्थानीय लोगों की आस्था का मुख्य केंद्र है। लोग यहाँ मच्छलियों की पूजा अर्चना कर आटा खिलाते हैं। खास धार्मिक अवसरों के अलावा शनिवार और मंगलवार को लोग यहाँ विशेष तौर पर आटा खिलाने के लिए आते हैं।
झील के ठीक ऊपर की ओर मछलियों के भगवान मछिंद्रनाथ का एक बहुत ही सुन्दर मन्दिर है। यह मंदिर भगवान विष्णु के मत्स्यावतार को समर्पित है।
मछलियों को खिलाया जाता है आटा
मच्छयाल में स्थित इस पवित्र झील में लोग मच्छलियों को हर दिन आटा, मखाने, बिस्कुट आदि खिलाते हैं तथा अपनी मन्नत मांगते हैं. यहाँ पर मछलियों के शिकार पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है।
लोग मांगते थे मन्नतें
प्राचीन समय से लोग यहाँ अपनी मन्नतें मांगने आते हैं। कुछ दशक पहले तक लोग मन्नत पूरी होने पर मछिन्द्र देवता को आभूषण भेंट कर जाते थे। कई बार लोग मछली के नाक में छल्ला पहना देते थे. इसी प्रकार का सोने का छल्ला एक महाशीर मछली के नाक में लगभग 15-20 वर्ष पहले इसी झील में देखा गया था.
मन्नत पूरी होने पर लाते हैं जातर
मछिन्द्र देवता की कृपा से जब लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं तो लोग गाजे बाजे के साथ यहाँ पर जातर भी लाते हैं. यह परम्परा सदियों से चली आ रही है.
विलुप्त हुई परम्परा
आजकल यह परम्परा लगभग विलुप्त हो चुकी है. लेकिन फिर भी महाशीर मछली को आज भी आटा खिलाया जाता है चाहे ख़ुशी के सन्दर्भ में हो या अच्छे भाग्य की कामना की बात हो.
बैसाख में लगता है मेला
भारतीय देसी महीने बैसाख में यहाँ मेला लगता है. मेला तीन दिन तक चलता है और आसपास के गाँव के लोग यहाँ मेले का आनन्द उठाने आते हैं तथा ख़ुशी से झूम उठते हैं.मेले में कई प्रकार की खेलों का आयोजन होता है.
मेले का मुख्य आकर्षण कुश्ती होती है जिसका फाइनल मुकाबला मेले के अंतिम दिन होता है. जिले के, स्थानीय व बाहरी राज्यों के पहलवान भी अपना दमखम दिखाने यहाँ आते हैं और आकर्षक इनाम जीत कर जाते हैं.
बस्सी पन बिजली परियोजना में इस्तेमाल उहल नदी का पानी, रणा खड्ड, गुगली खड्ड का पानी मच्छयाल के पास मिलता है और एक छोटी नदी लूणी का रूप ले लेता है.
महाशीर मछलियाँ हैं यहाँ
मछलियों के भगवान का एक बहुत ही सुन्दर मन्दिर झील की ऊपर की तरफ है. इस मंदिर के ठीक सामने दूरी तरफ शनिदेव का मंदिर हाल मेन ही बनाया गया है जहां सभी श्रद्धालु माथा टेकते हैं।
एक और झील जोकि इस पवित्र झील से डेढ़ किलोमीटर दूर है 200 मीटर लम्बी और 20 से 50 मीटर चौड़ी है. यहाँ भी हजारों की संख्या में महाशीर मछलियाँ हैं.
भारत का पहला महाशीर फार्म यहाँ से दस किलोमीटर दूर उपरली मच्छयाल में प्रस्तावित था लेकिन अब वह मच्छयाल से डेढ़ दो किलोमीटर की दूरी पर लूणी खड्ड में बनाया गया है.
जहरीली वस्तु से हुआ था नुक्सान
सन 2000 के शुरुआत में कुछ शरारती तत्वों ने रणा और गुगली खड्ड में कुछ जहरीली वस्तु मिला दी थी जिस कारण कई पवित्र मछलियाँ मच्छयाल झील में मृत पाई गई थी.
मच्छयाल देवता के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाते हुए श्रद्धालुओं ने कई मछलियों को जमीन में दबा दिया था और लोगों में इस घृणित कार्य के लिए शरारती तत्वों के प्रति गुस्सा और असंतोष था.
सन 1972 में रिलीज़ हुई ‘मुनीमजी’ फिल्म के गाने ‘पानी में जले मेरा गोरा बदन..’ की पूरी शूटिंग मच्छयाल में हुई थी. देखें वीडियो