सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें जरूरतमंदों, किसानों, बागबानों द्वारा किए कब्जों को अवैध घोषित कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को त्रिलोचन सिंह बनाम हिमाचल सरकार व अन्य मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के कब्जे हटाने के आदेश पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने के आदेश जारी किए।
हिमाचल सरकार ने 29 मई, 2000 को हिमाचल प्रदेश भू राजस्व अधिनियम (एचपीएलआरए) की धारा 163-ए के तहत लोगों से उनके अवैध कब्जों के बारे में जानकारी एकत्रित की थी, ताकि वन टाइम सेटलमेंट के तहत सरकारी भूमि पर हुए कब्जों को नियमित कर संबंधित लोगों को राहत दी जा सके।
तत्कालीन सरकार ने अधिसूचना जारी कर अगस्त, 2002 से पूर्व हुए कब्जों के बारे में लोगों से जानकारी देने को कहा। धर्मशाला निवासी याचिककर्ता ने भी आठ अगस्त, 2002 को इस बारे में अर्जी दी थी।
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता विनोद शर्मा व गौरव कुमार ने पैरवी की। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश विक्रमनाथ व संदीप मेहता के समक्ष पक्ष रखते हुए कहा कि याचिककर्ता अतिक्रमणकारी नहीं है, बल्कि यह जमीन उसे पंचायत से पट्टे पर हासिल हुई है।
याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता विनोद शर्मा ने कहा कि जिस छोटे से जमीन के टुकड़े पर वह सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए घर बनाकर पिछले पांच दशकों से रह रहे हैं और खेतीबाड़ी कर रहे हैं, किंतु हाई कोर्ट ने उन्हें अपना पक्ष तक रखने का मौका नहीं दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को दाखिल कर लिया और आगे की कार्यवाही के लिए और मध्यांतर आदेश (स्टेटस को) पास किया। साथ ही उस जमीन की यथास्थिति बनाए रखने के आदेश भी दिए।
ज्ञात रहे कि प्रदेश सरकार द्वारा मांगी गई जानकारी के दौरान 2002 में एक लाख 67 हजार 339 लोगों ने सरकारी भूमि पर किए गए कब्जों को नियमित करने के लिए गुहार लगाई थी।
हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार के हिमाचल प्रदेश भू राजस्व एक्ट 1954 की धारा 163-ए को असंवैधानिक और मनमाना बताते हुए पांच अगस्त, 2025 का इन कब्जों को अवैध घोषित कर दिया था।
हाई कोर्ट के फैसले से सरकारी भूमि पर हर एक कब्जा अवैध हो गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति आदेश पर फिलहाल उन लोगों को राहत जरूर मिल जाएगी, जिन्होंने नियम पूरे किए हैं।