भले ही भारत में आजादी के बाद राजतंत्र समाप्त हो गया है, लेकिन राजाओं की शान-ओ-शौकत आज भी कायम है। इसी की एकबानगी गुरुवार को कांगड़ा के ऐतिहासिक किले में दिखी, जब कटोच वंश के 489वें राजा एश्वर्य चंद कटोच का राजतिलक हुआ।
कांगड़ा दुर्ग में कटोच वंश की कुलदेवी मां अंबिका के मंदिर में बीजापुर के ठाकुर उदय देव कटोच ने नए महाराजा का राजतिलक किया। दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले राजवंशों में शामिल कांगड़ा के कटोच वंश के कार्यक्रम में देश-विदेश से लोग पहुंचे।
सुबह 9 बजे 12 बजे तक राजतिलक हवन व नवमी की पूजा हुई। 12 बजे से एक बजे तक राजतिलक कार्यक्रम हुआ। उसके बाद त्रिगर्त दरबार में नजराना पेश किया गया।
राजमाता चंद्रेश कुमारी ने नए महाराजा ऐश्वर्य देव चंद कटोच के राजतिलक के उपलक्ष्य में दो अप्रैल को राजमहल लंबागांव में स्थानीय जनता के लिए कांगड़ी धाम का आयोजन भी किया है।
राजतिलक होते ही शैलजा कुमारी कटोच को महारानी और उनके बेटे अंबिकेश्वर चंद्र कटोच को टिक्का राज की उपाधि मिल गई। कार्यक्रम में महाराजा ऐश्वर्य चंद कटोच ने एक पुस्तक का विमोचन भी किया। कांगड़ा दुर्ग में अंतिम राज्यभिषेक 1629 ईस्वी में हुआ था।
किले के पास म्यूजियम
कटोच वंश के राजाओं ने कभी त्रिगर्त में 3000 मंदिर बनाए थे। ऐश्वर्य पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रेश कुमारी के पुत्र हैं। कांगड़ा किला के पास महाराजा संसार चंद म्यूजियम भी राजघराने परिवार द्वारा चलाया जा रहा है।
वहीं कांगड़ा का किला अपने 282 रक्षात्मक घेरों के साथ अजेय था। इस किले को देखने आज भी देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं।
कार्यक्रम में दूर-दूर से पहुंचे लोग
कार्यक्रम में दूर-दूर से हस्तियां पहुंचीं। इनमें महाराजा संसारचंद कटोच की जन्मभूमि बीजापुर से उदयदेव कटोच पहुंचे। बस्तर,जयपुर, रामपुर, सिरोही, जोधपुर के शाही परिवारों से लोग पहुंचे।
गुलेर से कंवर राघव गुलेरिया तो सीबा से राजा डा अशोक ठाकुर ने शिरकत की। दिल्ली समेत विदेशों से भी कई मेहमानों ने कार्यक्रम में भाग लिया।