शिमला : मणिमहेश यात्रा के दौरान गौरीकुंड पड़ाव से श्रद्धालु गंगाजल लेकर नहीं जाते हैं। मान्यता है कि गौरीकुंड के पास से जब कोई गंगाजल लेकर गुजरता है तो कुंड के पानी में उबाल आने लगता है।
इतना ही नहीं, यदि कोई गलती से भी गौरीकुंड में गंगाजल की एक बूंद भी डाल दे तो यह कुंड पूरी तरह सूख जाता है। ऐसे में जो भी श्रद्धालु डल झील पर गंगा जल चढ़ाने के लिए लाते हैं, वे दूसरे रास्ते से ही अगले पड़ाव के लिए रवाना हो जाते हैं।
महंत आकाश गिरि और महाकाल गिरी बताते हैं कि मां गौरा ने भगवान शंकर को पाने के लिए कठोर तप यहीं पर किया था।
आज भी देवता यहां भगवान शंकर की भक्ति में लीन रहते हैं। महंत आकाश गिरी और महाकाल गिरी बताते है कि गौरीकुंड मां की तपस्थली है। यहां आज भी देवता भगवान शंकर की तपस्या में लीन हैं।
गौरीकुंड में स्नान के बाद सुहागी चढ़ाती हैं महिलाएं
बता दें कि गौरीकुंड समुद्रतल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर है। माता गौरा के इस पड़ाव की अपने आप में विशेष महत्ता है। खासतौर पर महिलाएं गौरीकुंड पर स्नान करने के बाद माता की चिह्न रूपी मूर्ति की पूजा-अर्चना करती हैं।
सुहागिन महिलाएं माता को सुहागी का सामान चढ़ाती हैं। मां से सुहाग की लंबी उम्र का वर मांगती है। अविवाहित युवतियां योग्य और मनवांछित वर मांगती हैं।
गौरीकुंड पहुंचते ही खत्म हो जाती है 10 किमी की चढ़ाई चढ़ने की थकान
पवित्र मणिमहेश यात्रा के सुंदरासी पड़ाव से आगे श्रद्धालु भैरोंघाटी और ग्लेशियर प्वाइंट से होकर अपने अगले पड़ाव गौरीकुंड पहुंचते हैं।गौरीकुंड पड़ाव पर पहुंचते ही 10 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने की थकान एकदम दूर हो जाती है। यहां करीब से भगवान शंकर के कैलाश के दर्शन पाकर मन गदगद हो जाता है।
यह मां गौरा का पवित्र पावन धाम है। गौरीकुंड पड़ाव में माता गौरा की संगमरमर की मूर्ति के साथ पवित्र भी कुंड है। इस पवित्र कुंड में स्त्रियां ही स्नान करती है। सुंदरासी से श्रद्धालु जब गौरीकुंड पहुंचते हैं तो कुछ पल के लिए जरूर रुकते हैं।