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बिजली परियोजनाओं पर लगा मार्केट वैल्यू का दो फीसदी भू-राजस्व

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हिमाचल में बिजली परियोजनाओं को प्रोजेक्ट के औसत बाजार मूल्य का दो फीसदी भू-राजस्व चुकाना होगा। ऊर्जा निदेशालय से बिजली परियोजनाओं की असेस्मेंट के बाद राजस्व विभाग ने लैंड रेवेन्यू का रेट नोटिफाई कर दिया है।

मुख्य सचिव की ओर से जारी की गई अधिसूचना के अनुसार अब राज्य के बंदोबस्त अधिकारी अपने-अपने जोन में स्पेशल असेस्मेंट रिपोर्ट पब्लिश करेंगे और इस रिपोर्ट पर संबंधित बिजली प्रोजेक्टों से आपत्तियां मांगी जाएंगी।

इन आपत्तियों पर विचार करने के बाद फाइनल असेस्मेंट रिपोर्ट राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी और इस अनुसार बिजली परियोजनाओं को भू-राजस्व जमा करवाना होगा।

यह लैंड रेवेन्यू पहली जनवरी, 2026 से लागू होगा। फोरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट में अनुमति लेकर ट्रांसफर की गई जमीन पर भी भू-राजस्व देना होगा, क्योंकि राजस्व विभाग ने अपने एक्ट में लीगल ऑक्यूपायर शब्द का इस्तेमाल किया है।

यानी जमीन का मालिकाना हक यदि प्रोजेक्ट के पास नहीं है, तो भी लैंड रेवेन्यू देना होगा। ऊर्जा निदेशालय की असेस्मेंट के अनुसार कुल 188 बिजली परियोजनाओं से 2000 करोड़ रुपए का भू-राजस्व एकत्र होने का आकलन है।

हालांकि राज्य सरकार ने वर्तमान वित्त वर्ष के बजट में भी भू- राजस्व से 1018 करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन नया कानून बनाने से लेकर इसकी दर तय होने तक लगे समय के कारण अब सिर्फ आखिरी तिमाही ही इस वर्ष की शेष है।

नए कानून के मुताबिक, ऐसी हर जमीन पर भू-राजस्व देना होगा, जिसे नॉन एग्रीकल्चरल इस्तेमाल के लिए डायवर्ट किया गया है। कैबिनेट ने निर्णय लिया था कि पहले चरण में जल विद्युत परियोजनाओं पर ही इसे लगाया जाए।

इसके बाद शिमला और कांगड़ा के सेटलमेंट अफसरों को स्पेशल असेस्मेंट की प्रक्रिया शुरू करने को कहा गया। इन्होंने सभी जिलों के उपायुक्तों से उनके जिले में स्थापित बिजली परियोजनाओं की लिस्ट फाइनल की और उसके बाद बिजली प्रोजेक्ट की औसत बाजार कीमत तय करने के लिए ऊर्जा निदेशालय की मदद ली गई।

वाटर सेस का तोड़ है लैंड रेवेन्यू
राज्य सरकार ने इससे पहले बिजली परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाया था। इसके लिए बनाए गए कानून को सरकार कोर्ट में डिफेंड नहीं कर पाई। यह केस अभी सुप्रीम कोर्ट में है और वाटर सेस वसूली पर रोक है।

इसलिए राजस्व विभाग के माध्यम से लैंड रेवेन्यू का रास्ता निकाला गया। इसके लिए नया कानून बनाया गया। विधानसभा से पारित एक्ट में इसकी अधिकतम सीमा चार फीसदी थी, लेकिन सरकार ने बिजली परियोजनाओं पर दो फीसदी ही रेट लगाया है। इस भू-राजस्व पर अभी पर्यावरण शुल्क भी अलग से प्रभावी होगा।

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