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कुल्लू में लंका दहन के साथ संपन्न होगा अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव

विश्व का सबसे बड़ा देव महाकुंभ यानी अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव सातवें दिन शुक्रवार को लंका दहन के साथ संपन्न होगा। देवभूमि कुल्लू के आराध्य देवी-देवता लंका पर चढ़ाई करेंगे।

भगवान रघुनाथ जी की भव्य शोभायात्रा निकलेगी। लंका दहन के बाद भगवान रघुनाथ जी सहित देवता-देवता अपने देवालय लौटेंगे।

बता दें कि देव समागम में देवभूमि कुल्लू के मनाली, निरमंड, आनी, बंजार, सैंज, गड़सा, मणिकर्ण, काईस, ऊझी, लगवैली, महाराजा के 300 से अधिक देवी-देवताओं ने भाग लिया।

इस बार दशहरा उत्सव के इतिहास में सबसे ज्यादा देवी-देवता विराजमान हो गए। इनमें से करीब 100 के करीब देवी-देवता लंका दहन में भाग ले सकते हैं।

हालांकि प्रशासन ने 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजे थे, लेकिन गत वर्ष तक आंकड़ा 300 से अधिक तक ही पहुंचा। इस बार भी यह आंकड़ा 300 के आसपास है।

इस बार भी मुआफीदार देवी-देवता, गैर मुआफीदार देवी-देवता के साथ अन्य देवी-देवता बिना निमंत्रण पहुंचे हैं। विधिवत पूजा-अर्चना के बाद बुधवार को लंका दहन के लिए माता हिडिम्बा की अगवाई में लंका दहन होगा।

लंका दहन के लिए रथयात्रा पशु मैदान के अंतिम छोर पर पहुंचेगी। इसके बाद माता हिडिम्बा व राज परिवार के सदस्य ब्यास तट पर लंका दहन की परंपरा का निर्वहन करेंगे।

इसके बाद रथ मैदान से भगवान रघुनाथ पालकी में सवार होकर रघुनाथपुर अपने मंदिर लौटेंगे। खास बात यह है कि पूरे देश में एकमात्र कुल्लू दशहरा उत्सव में रावण के पुतले नहीं जलाए जाते हैं।

यहां पर लंका दहन की प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया जाता है। देव परंपरानुसार ब्यास नदी के किनारे लंका वेकर में जाकर बावड़ी के पास सभी प्राचीन रिवायतें निभाई जाती हैं।

वहीं, लंका दहन से पहले कुछ देवी-देवता अपने-अपने देवालय की ओर लौटेंगे। लंका दहन की चढ़ाई में इस वर्ष अधिष्ठाता रघुनाथ जी के साथ कई देवी-देवता शिरकत करेंगे।

लंका बेकर में माता हिडिम्बा और राज परिवार के सदस्यों द्वारा लंका दहन की रस्म निभाई जाती है।

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