हिम टाइम्स – Him Times

जलवायु परिवर्तन के चरम पर भारत, 2030 तक दोगुनी होगी गर्मी

Chances rain and snowfall Himachal March 14

नई दिल्ली। भारत के सभी प्रमुख शहर इन दिनों भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं और आगामी दिनों में प्रचंड गर्मी होने के आसार हैं।

आईपीई ग्लोबल और एसरी इंडिया के एक अध्ययन के अनुसार, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, सूरत, ठाणे, पटना और भुवनेश्वर जैसे शहरी क्षेत्रों में 2030 तक गर्मी के दिनों की अवधि में दोगुनी वृद्धि होने का अनुमान है।

नई दिल्ली में ग्लोबल-साउथ क्लाइमेट रिस्क सिम्पोजियम में पेश रिपोर्ट ‘वेदरिंग द स्टॉर्म: मैनेजिंग मॉनसून इन ए वार्मिंग क्लाइमेट’ आने वाले वर्षों के लिए एक गंभीर तस्वीर पेश करती है, क्योंकि भारत अब तेजी से परिवर्तनशील जलवायु के चरम से जूझ रहा है।

भारत में पिछले 30 वर्षों में अत्यधिक गर्मी वाले दिनों में 15 गुना वृद्धि देखी गई, जबकि पिछले दशक में इसमें 19 गुना वृद्धि हो चुकी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक चलने वाली ये गर्मी अब अनियमित और तीव्र वर्षा की ओर ले जा रही है, जिससे 2030 तक देश के 80 प्रतिशत जिलों में बारिश होने के आसार हैं।

आईपीई ग्लोबल में जलवायु प्रमुख अविनाश मोहंती ने चेतावनी देते हुए कहा, “परिवर्तन की गति और पैमाने अभूतपूर्व हैं। हम देख रहे हैं कि मानसून लंबी गर्मियों जैसी स्थितियों में बदल रहा है, जिससे बारिश अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है।

इस स्थिति को संभालना मुश्किल है और इससे उबरना और भी मुश्किल है। ” वर्ष 2030 तक टियर-। और टियर-2 के 72 प्रतिशत शहरों में बार-बार गर्मी, भयंकर बारिश, बिजली के तूफान और यहां तक ​​कि ओलावृष्टि भी होने का अनुमान है। विशेषतौर पर तटीय जिले गंभीर खतरे में हैं।

यहां लगभग 70 प्रतिशत लोगों को मानसून के दौरान भी गर्मी जैसी स्थितियों का ही सामना करना पड़ सकता है। यह प्रतिशत वर्ष 2040 तक 79 प्रतिशत तक हो सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्यों को गर्मी और बाढ़ दोनों का सामना करना पड़ेगा, जिससे इन प्रदेशों के 80 प्रतिशत से अधिक जिले प्रभावित होंगे।

आईपीई ग्लोबल के प्रबंध निदेशक अश्वजीत सिंह ने जोर देकर कहा कि समूचे विश्व के दक्षिणी भाग खास तौर पर भारत दोहरे नुकसान में हैं, जो विकास के लिये संघर्ष करते हुए जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से भी जूझ रहा है।

उन्होंने कहा कि वनों की कटाई, भूमि-उपयोग में बदलाव, आर्द्रभूमि और झाड़ियों एवं इसी प्रजाति के पेड़ों का विनाश देश के स्थानीय जलवायु संकट को बढ़ा रहा है। इन मानव-जनित परिवर्तनों के कारण कई संवेदनशील जिलों में भूमि उपयोग में 63 प्रतिशत बदलाव आया है।

अध्ययन में आह्वान किया गया है कि उपग्रह डाटा और जलवायु मॉडल का उपयोग करने वाली राष्ट्रीय जलवायु संकट वेधशाला (सीआरओ) का जिला स्तर पर गठन किया जाये, ताकि इस बाबत स्थानीय कार्रवाई की अगुवाई हो सके।

गौरतलब है कि भारत पहले से ही जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का सामना कर रहा है। तत्काल और व्यापक कार्रवाई के बिना ये प्रभाव और भी गंभीर हो जायेंगे, जिससे जीवन, बुनियादी ढांचे और आर्थिक विकास के खतरे में पड़ने की आशंका है।

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